ॐ श्री गणेशाय नमः
गंगालहरी
{॥ गंगालहरी ॥}
समृद्धं सौभाग्यं सकलवसुधायाः किमपि तं
महैश्वर्य लीलाजिनतजगतः खण्डपरशोः ।
श्रुतीनां सर्वस्वं सुकृतमथ मूर्त सुमनसां
सुधसौदर्यं ते सलिलमशिवं नः शमयतु ॥ १॥
दरिद्राणां दैन्यं दुरितमथ दुर्वासनहृदा
द्रुतं दूरिकुर्वणम सकृदपि गतो दृष्टिसरणिमं।
अपि द्रागाविद्याद्रुमदलनदीक्षागुरुरिह
प्रवाहस्ते वारां श्रियमयमपारां दिशतु नः॥ २॥
हम अपने पहली ही पोस्ट में श्री पंडित जगन्नाथ कृत गंगालहरी के दो श्लोकों को प्रकाशित कर रहे है आशा है पाठको को ये रुचिकर लगेगा, ऐसे भी काशी में कोई भी कार्य बिना महादेव और पतित पावनि माँ गंगा के बिना आरम्भ नहीं हो सकता।
तो चलिए हमसब मिलकर शुभारंभ करते है; नमः पार्वती पते हर हर महादेव।
- सिद्धार्थ सिंह
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