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गपशप -बाबा सुतनखु का खत



आज से नई श्रृंख्ला

गपशप 

तो का हो कइसन हौआ जा; आज का दिन कइसन रहल। जे हे से कि आज से साझी के साझी हमरे साथ तू लोगन जा  बनारसी में बतियावल जा। 

आज का दिन ता बाद में पूछव पहिले ई बतावा लोगन की काम धंधा कइसन रहे; बतियावे भरे का टाइम ता लोगन निकल लेले होवा जा।  
ता हमार दिन सुना जा आपन बाद में कहत रहिया।
आज एक खे गीत सुनली बही खे सुनावत है जा 


कइसन  होखे मुनिया तोहरो जवनवा 
अपने ही सास के न मन लागे बा 
दिन भर के खातिर सईया जी गइलन 
माई की छोड़लन तोहरे भरोसवा। 
सांझी की  आबे पर तो न देखबु 
माई सगरे जीवन ही देखलन 
कइसन होखे मुनिया तोहरो जबनवा ......

ऐसे ही लोगन खेलत खात मस्त रहल जा। और आपन दिनचर्या ई बलॉग पर भेज दिहलस जाए। 


-बाबा सुतनखु का खत