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नो पार्क,नो पार्किंग


नो पार्क,नो पार्किंग
बनारस की वही समस्याएं हैं जो के एक अति आवादी को समाये छोटे भू-भाग की होती है और बनारस है तो फिर इसके दैनिक क्रिया-कलाप में ही घुमक्कड़ पन, सैर-सपाटा, दर्शन-पूजन, पान -कचौड़ी के लिए अपनी- अपनी पसंद की दुकान तक पहुँचना रोज़ का काम है, लेक़िन सड़के कहाँ है? इस समस्या को बार- बार उठा रही हूं क्योंकि ये बनारस के जीवन की लय को अब बाधित ही नही करता बल्कि उसका गला ही घोंट रहा है। 

चुकी मेरे घर शिशु को आये अभी साल भर हुय है और जैसे ही बच्चा अपने पैरों पर कुच्छ कदम ही चल पाता है उसकी सीमा बस घर की चार दिवारी ही नहीं होती उसके कदम तो इस दीवार को फांद कर बाहर की दुनियां देखने को ज़िद्द करता है। उसके बाल-मन को पंख लगें होते है, हर पल ही उड़ कर डाली से दूसरी डाली पर बैठने को व्याकुल।

न तो बनारस में ऐसे किसी पार्क की व्यवस्था है जहाँ बच्चे हरियाली, प्रकृति को पास से देख सकें और उनका मन भी बहल जाय, ले-देकर शहीद पार्क ही शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाके में है जहाँ तक पहुँचने के लिए पुनः इसी सड़क की समस्या झेलनी पड़ती है। साईकिल सवार ही जिस सड़क पर ठीक से चल ले, उसपर दुपहिया, तीन-पहिया, चार-पहिया और लोगो का तांता ही लगा रहता है। किसी तरह मन बना कर अगर पहुँचा भी जाये तो शहर पार्किंग की समस्या से त्रस्त दिखाई पड़ता है। 

सरकार से अनुरोध है के शहर में बच्चों के खेल सकने के लिए पार्क की व्यवस्था कैसे की जाय, इस ओर भी ध्यान दें, पार्किंग और सड़क दोनों की ही बनारसियों को दरकार है औऱ सरकार से अपेक्षा भी।

-अदिति सिंह 

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