Pages

Pages

Pages

बेबाक हस्तक्षेप

बेबाक हस्तक्षेप 

दलित विमर्श : क्या कोई सवघोषित दलित और पिछड़ा वर्ग  विचारक ये खुले तौर पर कह रहा है कि आज शाशन तंत्र पर हावी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति इन्ही समाजो से उभरकर शीर्ष पर पहुंचे है।  क्या कोई ऐसा स्वाराध्य भगवान विचारक मुझे ये बता सकता है कि स्वर्ण समाज को संपन्न मानने का आकड़ा कब और किस मानसिकता रखने वाली पार्टी ने जुटाया था या है ?

जो चीजे वोट के तौर पर मिल जाए वो थाली का भोजन की समझ रखने वाली राजनैतिक पार्टिया ये कभी नहीं करने वाली, क्योकि एक मुश्त वोट के लालच में वो जब घोटालों से देश को बेचने का विचार पाल सकती है तो ऐसा करना उनकी राजनैतिक समीकरणों को बिगाड़ देंगी। शहरो हो या गांव किसने जा कर देखा है दलित विमर्श जहां आज कुछ बचा ही नहीं वह कोई देखेगा भी क्या।  हा अधिकार विशेष के तौर पर कुछ वर्ग विशेष को सभी अधिकार समर्पित जरूर कर दिए गए है. तो स्वर्णो की कौन सोचें ?

और स्वर्ण है भी कहा जो दो जून की रोटी के लिए पिछले अनेको सालो से दबा कर कुचल दिया गया है अस ली दलित और पिछड़ा तो वो है क्यों गलत है न ? ये आप को पढ़ाए किताबी और राजनैतिक ज्ञान से मेल नहीं खता न। तो राजनैतिक और किताबी ज्ञान के आधार पर अपना कार्य करते रहिए।  पर जो भविष्य मुझे दिख रहा है उसमे स्वर्ण समाज का और बुरा है हाल होने जा रहा है तो मजा लीजिए सोची समझी साजिश के तहत शाशन तंत्र के द्वारा एक वर्ग विशेष को मिटाने का। 

ये लेखक के निजी विचार है।  

- संपादकीय 

No comments:

Post a Comment