कदम दर कदम
अक्सर जब परेशान होकर
इंसानो की बस्ती में
कोई एक
साथी ढूढ़ता हुँ
तो पाता हुँ
खुद को
प्रकृति के करीब और करीब
बहता पानी
याद दिलाता है
चलायमान संसार की
एक अदनी
मगर
कटु सच्चाई का
जब देखता हुँ पेड़ो को
तो समझता हुँ
जीवन देने का नाम है
ख़ामोशी से गुमसुम
जब देखता हुँ
चट्टानों को
तो पता हुँ दृढ़ता
डटकर अपनी जगह
खड़े रहने की
और फिर आगे बढ़ता हुँ
रोज हर रोज
कदम दर कदम
- सिद्धार्थ सिंह
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