सत्य या मिथक
काशी एक अद्भुत नगरी है जिसकी जितनी विवेचन की जाए कम ही होगा. एक और माँ गंगा का पावन तट है तो दूसरी और इसका स्यायु तंत्र गली नुमा शहर। किसी लेखक ने बड़े ही मनोयोग से इसकी विवेचना सामाजिक रूप में करते हुए लिखा है:-
" खिलती ही मेरे शहर में धूप छन के तंग गलियों से लिपट के लहरों से। "
वाकई में वो शहर अद्भुत होगा जहां सुबह-सुबह माँ गंगा के स्नान से दिनचर्या प्रारम्भ होकर गलियों से लोग बाग अपने काम में रम जाते होंगे और महादेव की शयन आरती पर शांत होता होगा। जी हा सदियों से एक सा रहने वाला; नियति के साथ सदा चलायमान ये शहर काशी ही तो है।
कहते है काशी विश्वनाथ की नगरी है पर यह योग काम ही लोग जानते है कि ये माता गौरी का प्रिय निवास स्थान है।
हाल फिलहाल एक शोध छात्र ने इसे एक त्रिकोण पर बसा बताया है और उसकी बात में कुछ सच्चाई भी मालूम होती है। पूरा शहर एक त्रिकोण के मध्य स्थित है जो देवियों के शक्ति पीठो से घिरा है। नियत दुरी पर त्रिकोण बनाने वाले मंदिर है मिर्जापुर का माँ विंध्यवासिनी मंदिर, अहरौरा का मुण्डेश्वरी मंदिर तथा जौनपुर का अटाला मस्जिद जो किसी ज़माने में अटाला देवी का शक्ति पीठ हुआ करता था।
बात में कितनी सच्चाई है ये तो शोध पूरा होने पर ही पता लग सकता है पर जितनी ऊर्जा काशी में है वो शिव के शव रूप से कभी उत्पन्न नहीं हो सकती जबतक उसमे शक्ति का समावेश न हो जाए।