हाईटेक होता बनारस
मस्तमौला बनारस को तकरीबन तेरह साल पहले मैं जैसा छोड़ के आई, आज भी वही अखड़पन, गालियां, मां गंगा, उनके किनारे श्रद्धालुओं का तांता, बाबा के दरबार में हर हर महादेव की गूंज...सब जस का तस। मगर बदल गया है शहर का नक्शा। बड़े-छोटे मॉल, बड़े ब्रांडों के चकाचक शोरूम, सड़कों का कहीँ चौड़ीकरण, तो कहीं फ्लाईओवर का जाल बिछाने की कोशिश, मोटरगाड़ियों से पटी सड़कें इन सब की कहानी बयान करते दिख जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनने से पहले ही हाईटेक विकास की लहर यहां की आबोहवा में रफ्तार पकड़ रही थी, पर अब विकास को और जोरशोर से कभी कागजी, तो कभी असली जामा पहनाने का काम चल रहा है। असर भी दिख रहा है। महानगरीय तड़क-भड़क की तेज दस्तक बनारस की आवोहवा में घुल रही है। एक के बाद कई मॉल से लेकर शॉपिंग कॉम्पलेक्स तन कर खड़े हो गए हैं। घर की बजाय फ्लैट सिस्टम को बढ़ावा मिल रहा है। गोदौलिया चौराहा का तो पूरा नक्शा ही बदल गया है। साथ ही खरीदारी के अंदाज पर भी महानगर की छाप शुमार हो रही है। सड़कों के दोनों ओर स्ट्रीट लाइट लग गए हैं। हालांकि, कुछ जगहोँ पर सिर्फ नाम के लिए लगे है, जलाया नहीँ जाता। चारपहिया में बैठकर कहीँ जाने के लिए निकलें तो रफ्तार काफी धीमी होगी, क्योंकि इंसानों से ज्यादा यहां गाड़ियों की संख्या में इजाफा हो रहा है। कुल मिलाकर बनारस का रूप दिन ब दिन हाईटेक हो रहा है और काम प्रगति पर है। कुछ नहीं बदला है, तो वो है बनारसीपन। वक्त के साथ विकास का कदमताल करना जरूरी भी है, लेकिन इन सबके बीच बनारस को जिंदा रखना भी एक चुनौती है। क्योंकि हाईटेक दुनिया छोड़ कर लोग सुकून की तलाश में यहां आते हैं। ऐसा न हो कि यह शहर भी कंकरीट का जंगल बनकर रह जाए।
-सोनी सिंह