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अमृत-वाणी- 'तब आसानी से उस गाय को कसाईखाने ले जाकर उसकी हत्या की...'

कुपात्र को दान का फल

एक कसाई एक गाय को कसाईखाने की ओर ले जा रहा था। बीच रास्ते में एक जगह गाय ने आगे भढ़ने से इंकार कर दिया। कसाई उसे इतना पिटता, पर वह टस से मस न होती।  बड़ी मुसीबत थी ! आखिर कसाई  भूख-प्यास और थकावट के मारे तंग आ गया। तब  गाय को एक पेड़ से बांध वह गांव में एक अतिथिशाला में जा पहुँचा।  वहां भरपेट भोजन करने के बाद उसमें ताकत आयी और तब आसानी से उस गाय को कसाईखाने ले जाकर उसकी हत्या की।  

गोहत्या के पाप का बहुतसा भाग उस अतिथिशाला के अन्नदान करने वाले मालिक को लगा, क्योंकि उसकी सहायता के बिना कसाई गाय को ले जाने में समर्थ न होता। 

इसलिए भोजन या अन्य वस्तु का दान देते समय यह विचार करना चाहिए के दान ग्रहण करनेवाला व्यक्ति कहीं दुर्जन या पापी तो नहीं है , कहीं वह दान का दुरूपयोग तो नहीं करेगा।  

बोधकथाएँ

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