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"सारे जहां से अच्छा..." इकबाल की सौगात


ढूंढता फिरता हूं मैं 'इकबाल' अपने आप को,
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंजिल हूं मैं।।

हर हिन्दुस्तानी की जुबां पर एक गीत जरूर आता है, 'सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा' .. इस गीत को उस दौर के मशहूर कवि इकबाल ने 1905 में लिखा था। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ, तो आधी रात के ठीक 12 बजे संसद भवन समारोह में इकबाल का यह तराना सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा भी समूह में गाया गया।

गालिब से भी बड़े शायर!
मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल उर्दू शायरी के मजबूत स्तंभ माने जाते हैं। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है। इकबाल को ज्यादातर लोग अल्लामा इकबाल के नाम से जानते हैं। बता दें अल्लामा का अर्थ होता है विद्वान। यूं तो उर्दू भाषा को पसंद करने वाले और शेरो-शायरी की दुनिया से ताल्लुक रखने वालों के लिए अल्लामा इकबाल का नाम नया नहीं है। यहां तक की कुछ समीक्षक उन्हें गालिब के बाद सबसे बड़ा शायर भी कहते हैं।
9 नवम्बर 1887 को सियालकोट में पैदा हुए इकबाल इस दुनिया में आए। इकबाल के पूर्वज सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे, जिन्होंने लगभग ढाई सौ साल पहले इस्लाम क़ुबूल कर लिया था। उनके पूर्वज कारोबार के सिलसिले में जम्मू से पंजाब के सियालकोट में आकर बस गए थे। उनके पिता शेख नूर मोहम्मद सियालकोट में दर्जी का काम करते थे।

कैम्ब्रिज से कला स्नातक
महज़ चार साल की उम्र में उनका दाखिला मदरसे में करवा दिया गया। उन्होंने कानून, दर्शन, फारसी और अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई की।
तालीम हासिल करने के लिए वो लंदन रवाना हुए। उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से वजीफा मिला था। यहां उन्होंने कला में स्नातक किया। 1907 में वो म्यूनिख चले गए और वहां लुडविंग मेक्समिलियन विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की। हालांकि वेस्टर्न एजुकेशन लेने के बाद इकबाल ने उर्दू के बजाए फारसी में ही ज्यादातर शेर लिखे। इकबाल 21 अप्रैल 1938 को भले ही दुनिया से अलविदा कह गए हों, लेकिन वो आज भी लोगों के जहन में जिंदा हैं। "सारे जहां से..." गीत हो या उनकी अन्य रचनाओं के जरिए इकबाल लोगों की जेहन में हमेशा बने रहेंगे।

विशेष रचनाएं
इनकी बेहद मशहूर रचनाओं में 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी', 'शिकवा' और 'जवाबे-ए-शिकवा' शामिल हैं। जिसे कई बड़े- बड़े हिंदी भाषी कवियों ने हिंदी में उसका अनुवाद भी किया। जिस मशहूर गीत की चर्चा आज भी पूरे भारत में होती है।

"अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे।।"

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