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बनारस की गलियां, जहां मन रमता हो-अदिति सिंह

बनारस की गलियां, जहां मन रमता हो-
बहुधा ही देखने को मिलता है के भगवान की भक्ति चाहे अंतर मन में ही कि जाए पर किसी न किसी रूप के प्रत्यक्ष होने से मन बिल्कुल रम जाता है। मन को स्थिर करने के लिए भी हम भगवान को किसी न किसी रूप में ही भजते हैं। बनारस तो है ही शहर मंदिरों का। हर गली के एक छोर से दूसरे छोर तक़ अनगिनत मंदिर की श्रृंखला हर बनारसी के श्रद्धा को ही दर्शाता है। हमारी सुबह मंदिर के घंटो की स्फुर्तिवर्धक आवाज़ को सुनकर होती है और संध्या की समाप्ति भी भजन कीर्तन से होती है। सच है यहाँ आप मुक्ति के लिए आये या फिर एकाग्र मन से चित को शांत ही करने के लिए, बनारस तो हर हिन्दू को जीवन में एक बार आना ही है। 

आधुनिकता की छाप तो बनारस पर दिखाई दे ही रही है पर मन इसका अभी भी भक्तिमय ही है।


कभी आईये हमारे शहर बनारस, गलियों और उन गलियों के बाज़ारों से भारतीय अंदाज़ से ख़रीदारी तो करेंगे ही आप, विशुद्ध लाजवाब देसी खान पान और हाँ मिठाईयां और इनपर एक पान। 

वाह!बनारस की गलियां आपको आपके अंतरमन तक़ पहुँचादेंगीं।

-अदिति सिंह 

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