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काशी सत्संग: ऐसी वाणी बोलिए...

कबीर दास जी ने ठीक ही कहा है, "ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।।" मान और अहंकार का त्याग करके ऐसी वाणी में बात करें कि औरों के साथ-साथ स्वयं को भी खुशी मिले, अर्थात मीठी वाणी से ही दिल जीते जाते हैँ।

बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा सोच- विचारकर शब्दों को बोलता है। क्योंकि, बात जुबान से और तीर कमान से निकलने के बाद वापस नहीँ आते, इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानी से करें। सतर्कतापूर्वक करें।

एक समय की बात है। एक किसान ने अपने पड़ोसी की खूब निंदा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के पास गया और बोला- 'मैंने अपने पड़ोसी की निंदा में बहुत उल्टी-सीधी बातें कर दी हैं, अब उन बातों को कैसे वापस लूं?'
पादरी ने वहां बिखरे हुए पक्षियों के पंख इकट्ठा करके दिए और कहा कि शहर के चौराहे पर डालकर आ जाओ। जब वापस आ गया तो पादरी ने कहा, 'अब जाओ और इन पंखों को वापस इकट्ठा करके ले आओ।' किसान गया, लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला। सब हवा में तितर-बितर हो चुके थे। किसान खाली हाथ पादरी के पास लौट आया। पादरी ने कहा- 'यही जीवन का विज्ञान है कि जैसे पंखों को इकट्ठा करना मुश्किल है, वैसे ही बोली हुई वाणी को लौटाना हमारे हाथ में नहीं है।'
इसलिए हमेशा याद रखो की शब्द वापस नहीँ लिए जा सकते, सो पहले बात को तौलो, फिर मुंह खोलो।।
ऊं तत्सत...

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