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बेबाक हस्तक्षेप

भारत-चीन संबंधों को फिर से नए सिरे से परिभाषित किए जाने को लेकर दोनों राष्ट्राध्यक्षों का प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। हालांकि, इन संबंधों को लेकर अभी भी भारत में बहुत आश्वस्तता नहीं दिखती, फिर भी आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और चीन के बिगड़ते व्यापारिक रिश्तों का लाभ भारत को मिल सकता है। मौके का लाभ उठाकर भारत चीन में निर्यात बढ़ा सकता है। भारतीय दवाओं से आयात शुल्क घटाने का चीन का फैसला इस दिशा में एक कदम है। हाल के दिनों में चीन और अमेरिका के बीच व्यावसायिक दूरी बढ़ी है। अमेरिका ने चीन से से आने वाली कई चीजों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। बदले में चीन ने भी वैसे ही कदम उठाएं हैं। फिलहाल, भारत इस दूरी का लाभ उठा सकता है।

इन सबके बीच, शुक्रवार को जारी चीनी पत्रिका की रिपोर्ट पर नजर डालें, तो चीनी अर्थव्यवस्था को 17 साल में पहली बार बड़ा झटका लगा है और इस साल की पहली तिमाही में 28.2 अरब डॉलर का चालू खाता घाटा हुआ है। इसके साथ ही चीन का दुनियाभर में सबसे बड़ा निवेशक बनने का सपना टूट गया। यानी व्यापारिक रिश्तों के चलते भी संबंध सुधरते हैं, तो भी फिलहाल राहत की बात है।

किंतु यह समझने के लिए की चीन पर भरोसा क्यों नहीँ होता? तब इसकी कई वजह है, जिनमें सबसे बड़ा मसला सीमा को लेकर है। दोनों देशों के बीच 3,500 किमोलीटर (2,174 मील) लंबी सीमा है। वास्तव में वर्ष 1951 में तिब्बत पर कब्जे के साथ ही चीन भारत का पड़ोसी बन गया और तबसे ही उच्चस्तरीय द्विपक्षीय वार्ता संबंधों में सुधार का संकेत नहीं रही। सीमा विवाद के कारण दोनों देश 1962 में युद्ध के मैदान में भी आमने-सामने खड़े हो चुके हैं, लेकिन अभी भी सीमा पर मौजूद कुछ इलाकों को लेकर विवाद है, जो कभी-कभी तनाव की वजह बनता है।
ताजा मामला तब शुरू हुआ, जब भारत ने पठारी क्षेत्र डोकलाम में चीन के सड़क बनाने की कोशिश का विरोध किया। भारत में डोकलाम के नाम से जाने जाने वाले इस इलाके को चीन में डोंगलोंग नाम से जाना जाता है। ये इलाका वहां है, जहां चीन और भारत के उत्तर-पूर्व में मौजूद सिक्किम और भूटान की सीमाएं मिलती हैं। भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं और भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है। भारत को चिंता है कि इस सड़क का काम पूरा हो गया, तो देश के उत्तर पूर्वी राज्यों को देश से जोड़ने वाली 20 किलोमीटर चौड़ी कड़ी यानी मुर्गी की गरदन जैसे इस इलाके पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी। ये वही इलाका है, जो भारत को सेवन सिस्टर्स नाम से जानी जाने वाली उत्तर पूर्वी राज्यों से जोड़ता है और सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है।
कुल मिलाकर, चीन के इतिहास को देखते हुए उस पर भरोसा करने की वजह तलाशना मुश्किल है, मगर वर्तमान हालात में दोस्ती भले न भी हो, तो दुश्मनी टालना ही बेहतर है और प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ताकतवर देशों के साथ संतुलन साधने की कोशिश में जुटे दिख रहे हैं।
-संपादकीय

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