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कैसे यकीन कर लूँ कि फिर आइयेगा आप / नजीर बनारसी

कैसे यकीन कर लूँ कि फिर आइयेगा आप,
आ भी गये तो मुझको कहाँ पाइयेगा आप।

ये दिल है इसको तोड़ के पछताइयेगा आप,
आईना देखने को तरस जाइयेगा आप।

हर एक खोयी शै को तो पा जाइयेगा आप,
मुझको कहाँ से ढूँढ़ के ले आइयेगा आप।

अपनी नजर से मुझको उतरने न दीजिये,
दुनिया की हर निगाह पे चढ़ जाइयेगा आप।

पर्दे की तरह मुझको पड़ा रहने दीजिये,
उठ जाऊँगा तो साफ नजर आइयेगा आप।

दर पर हवा की तरह से दीजेगा दस्तकें,
कमरे में आहटों की तरह आइयेगा आप।

वीरानियों पे तंज [1] करेगी भरी बहार,
आ जायेगा पसीना जो शरमाइयेगा आप।

मेरे लिये बहुत है जादे सफर [2] ’नजीर’
वो पूछते है लौट के कब आइयेगा आप।

शब्दार्थ
(1) व्यंग्य
(2) सफर का सामान

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