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बाबा सुतनखु का खत

गपशप 

का हो लोगन कइसन हउअ जा बाल-बच्चा सब मस्ती में और सुनावल जाए। हमनी अबही ले ५ प्रकार के पेड़ नीम , कदम्ब , पारिजात , शमी और कदम्ब के पेड़ लगावे के बारे में बतियावल गयल अब हमनी आज सागौन के पेड़ लगावे का बारे में जानल जाई।

बीएचयू में ढेरका ले सागवान रहल लेकिन ओके अब और नाहि लगवात हउअन; कोई नहीं हमनी लगावल जाई। जनता के जमीने पे पेड़ लगावे से हमनी के कोई नहीं रोक सकत ह और हमनी ओकरे वाचावे वदे लड़ भी जायल जाई। हमके याद ह संकट मोचन के मोडवा पे एक खे पेड़ रहल जेकरे कारण उहाँ छाह रहत रहल, जाने कौन मुंहझौस का नजर लगल की हरा पेड़ गिर गयल। कोई नहीं एदा पाड़ि हमनी काशी के फेनु आनंद कानन बनावे का संकल्प लेब। कोई सरकार का जरुरत नाही ह आपन शहर के हरा भरा करे बदे।  

सागवान का पेड़ लम्बा होए और पत्ती चौड़ा होइ। सागवान का पेड़ १३१ फीट ले लम्बा होइ और मोट तना  दू हाथ गोलाई से ज्यादा होइ। सागवान का फूल भी बहुत सोहर होइ त तयारी कर लेवा जा एदा पाड़ी बरसात का। 

 एगो कविता पढ़ा लोगन तब जनवा पेड़ के बारे में :

दिव्‍या कुमारी जैन की कविता- पेड़ की व्‍यथा

मैं हूँ पेड़।
नीम, बबूल, आम, बड़, पीपल, सागवान, सीसम और चन्‍दन का पेड़।
मैं हूँ पेड़।
मैं तुम्‍हें सब कुछ देता।
फूल देता,फल देता।
सूखने के बाद लकड़ी देता।
और जो है सबसे आवश्‍यक कहलाती है जो प्राणवायु, ऐसी ऑक्‍सीजन वो भी मैं ही तुम्‍हें देता।
मैं हूँ पेड़।
मैं तुम्‍हें सब कुछ देता।
बदले में तुमसे क्‍या लेता,कुछ भी तो नहीं लेता।
और तुम मुझे क्‍या देते ? बताओ तो जरा
हाँ लेकिन तुम
काटते हो मेरी टहनियाँ, मेरी शाखाएँ, मेरा तना
मुझे लंगड़ा व लूला बनाते हो।
मैं हूँ पेड़।
मैं तुम्‍हें सब कुछ देता।
तुम रूठ जाओ तो क्‍या होगा नुकसान ?
कुछ भी नहीं फिर भी तुम्‍हें मनाती हैं माँ और बहन
मैं रूठ जाऊँ तो क्‍या होगा ? कौन मनाएगा मुझे
और मैं नहीं माना तो !
आक्‍सीजन कौन देगा तुम्‍हें
वर्षा भी नहीं होगी,पानी नहीं मिलेगा
सूर्य के प्रकोप से कौन बचाएगा, पथिक को विश्राम कहा मिलेगा।
तुम्‍हें फल,फूल,दवा और लकड़ी कौन देगा।
सोचा है तुमने कभी ?
मैं हूँ पेड़।
मैं तुम्‍हें सब कुछ देता।
मैने देखा है आप मुझे लगाने के नाम पर रेकार्ड बनाते है।
लगाते दस और बताते सौ है और चल पाते है उनमें से भी मात्र कुछ पेड़
बताओ मुझे
तुमने जो पेड़-पौधे लगाए उनको पानी कितनी बार दिया।
कितनों की सुरक्षा की और पेड़ बनाया।
हां मैं स्‍वयं जब अपनी संतति फैलाने की कोशिश करता हूं।

अपने बीजों को हवा से दूर-दूर फेंककर उगाना चाहता हूं।
तो तुम उसमें भी डाल रहे हो रूकावट
बताऊँ कैसे ?
तुमने जमीन को पॉलिथीन की थैलियों से बंजर बना दिया है
इन थैलियों ने जमीन में फैला रखा है अपना साम्राज्‍य


ये थैलियाँ मेरे बीज को, मेरी जड़ों को जमीन में जाने नहीं देती
मुझे उगने को पनपने को,जगह नहीं देती
अगर यह स्‍थिति रही तो, एक दिन धरा हो जाएगी मुझसे वीरान
मिट जाएगा धरा से मेरा नामो-निशां
भला मेरा तो इससे क्‍या जाएगा
पर बताओ मानव आक्‍सीजन कहां से पाएगा।
मैं हूँ पेड़।
मैं तुम्‍हें सब कुछ देता।
मुझे लगाकर ऐसे ही छोड़ देने वाले
मेरे नाम पर रेकार्ड बनाने वाले
मेरी परवरिश नहीं करने वाले,तुम्‍हें तो सजा मिलनी चाहिए
सजा भी ऐसी वैसी नहीं बल्‍कि
भ्रूण हत्‍या करने वाले को मिलती है जैसी।
वो ही सजा ऐसे लोगो को मिलनी चाहिए
क्‍योंकि पौधों को लगाकर उनकी रक्षा न करना
उसे मरने के लिए छोड़ देना भ्रूण हत्‍या के समान है।
मुझे यह सब कहना पड़ा।
अपनी पीड़ा को व्‍यक्‍त करना पड़ा
क्‍योंकि मैं चाहता हूँ आपका भला
आप भी चाहो मेरा भला।
मैं हूँ पेड़।
मैं तुम्‍हें सब कुछ देता।

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दिव्‍या कुमारी जैन,पॉलिथीन मुक्‍त भारत अभियान चला रही है,जिसमें पॉलिथीन पर कक्षा- देशभर में पाबन्‍दी के साथ-साथ,निस्वार्थ भाव केन्‍द्रीय विद्यालय चित्तौड़गढ़

से पौधरोपण कर उनकी सुरक्षा एवं पानी बचाओ-जीवन बचाओ का संदेश गत 3 वर्षो से दे रही हैं।

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