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बेबाक हस्तक्षेप

देश की प्रमुख नदियों में से एक गंगा का इस कदर क्षरण बड़े खतरे का संकेत है। पर्यावरण हमें लगातार सतर्क कर रहा है कि अभी अगर हम नहीँ चेते, तो धरती से जीवन उठने में अधिक देर नहीँ लगेगी।

आंकड़े बताते हैं कि आज हमारी सभी जीवन उपयोगी वस्तुओं का तेजी से ह्रास होता जा रहा हैं। हमारी नदियां सूखने के कगार पर खड़ी हैं, जंगलों का हमने सफाया कर दिया है और पेड़-पौधों से हमारा दूर-दूर का नाता नहीं बचा। पहाड़ी क्षेत्रों में भी अब अमूमन वर्षा और ठण्ड का अनुपात कम होता जा रहा है और मैदानी इलाकों को जनसंख्या ने अपनी जकड़ में ले लिया है, जिससे घरेलु वन्य जीवों, पशु-पक्षियों का जीना दूभर हो गया है। 

ऐसा नहीं है कि ये स्थिति आज के क्रियाकलापों से उत्पन्न हुई है, इतना जरूर है आज के क्रियाकलापों से इसमें तेजी से इजाफा हुआ है। मनुष्य ने अपनी विभीषिका की कहानी लिखना शुरू कर दिया है। आज हर घर से निकलने वाले कचरे का अनुपात बढ़ता जा रहा है और इसके निस्तारण की कोई व्यवस्था हम अभी तक नहीं ढूढ़ पाए हैं। अगर यही स्थिति कुछेक वर्षों तक बनी रही, तो पृथ्वी अपने साथ-साथ सब कुछ बर्बाद कर देगा।   

आज की राजनीतिक स्थिति ऐसी है, जिसमें औद्योगीकरण को बल मिल रहा है और ये जरुरी भी है, पर जिस तेज गति से औद्यौगीकरण हो रहा है, उसी तेज गति से हमारे शहरों की आवो-हवा खराब होती जा रही है और बढ़ती जनसँख्या उस कोढ़ में खाज का काम कर रहा हैं। इसका सबसे बुरा पहलु ये है कि हमने अब अपने गांवों को भी बर्बाद करना शुरू कर दिया है। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बड़े शहरों के आस-पास बसे गांवों को लीलता जा रहा है। 

कुल मिलाकर, जल्द ही हमने पर्यावरण को लेकर कोई गंभीर कदम नहीं उठाया, तो यह नष्ट हो जाएगा और आने वाली समझदार पीढ़ी चाह कर भी इसे बचा नहीं पाएगी। हम बर्बादी के मुहाने पर खड़े है, पर अभी भी वक्त है कि अपनी आबो-हवा बचा लें। 

-संपादकीय

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