महंगाई ने आपकी कमर तोड़ दी हैं, तो कोई बात नहीं कमरासन कर ले और चैन की बंसी बजाए। जरुरत हो तो गृह त्याग दें और संन्यासी बन जाए। इतने पर भी बात न बने तो कही एकांत में जाकर आत्महत्या कर ले। जी हाँ, आत्महत्या के बढ़ते आंकड़े तो लगता है, यही कह रहे हैं। भारत में आत्महत्या की दर में इस वर्ष 23% की वृद्धि हुई है। खैर, सारी समस्याओं का समाधान योग में छुपा है, यकीन नहीं आता। तो आइए, हम बताते हैं, ऐसे योग-
अन्न दाता का भूख योग
अन्न-जल त्याग दें, क्योंकि अन्नदाता स्वयं भूखा हैं। तो वो अन्न कहाँ से पैदा करेगा। उसने भी योग को अपना लिया हैं। उसका योग ही है कि आज प्राइवेट कंपनियां तेजी से खेती योग्य भूमि हथियाती जा रही हैं। उसने खुद को मोह माया से ऊपर उठा लिया हैं और स्वयं भी ऊपर उठने के कगार पर हैं।
पहले उसने शहरों में आकर रिक्शा खींचा, फिर माल लादने का कार्य किया, नहीं कुछ मिला तो भीख भी माँगा पर अपने परिवार को पोषित करता रहा। उसका परिवार हम आप ही तो हैं। किसान ने ये सब कुछ किया पर अन्न उपजाना नहीं छोड़ा। पर आज वो इतना प्रताड़ित हैं कि उसने दुर्भाग्य वश योग को अपना लिया हैं। जी हाँ भूखे पेट रहने का योग।
मौन योग
बड़े कारनामे करता हैं ये योग अगर सब कुछ अच्छा रहा तो आप के चेहरे की रौनक को बढ़ाता हैं हाँ अगर बुरा हैं तो ईश्वर ने आप को पाप का भागी बनाया हैं। मान ले और मौन योग अपना ले। सरकार तो यही चाहती हैं। किसानों के हालिया आंदोलन पर तो सरकार ने मौन योग का सबसे बड़ा उदाहरण पेश किया। इससे आन्दोलन कर रहा किसान भी इतना प्रभावित हुआ कि आंदोलन बीच में ही तोड़ कर उसने भी “मौन योग”का रास्ता चुन लिया। वैसे, मौन-मौन में ही किसानों ने कैराना में वोट डालें, जिसका परिणाम जग विदित है।
हठ योग
योग के प्रकार खत्म नहीं हुए अभी। कैराना हारकर या एनडीए के साथियों की बात को अनसुना कर जिस तरह सरकार “हठ योग” कर रही है, उससे भी आप काफी कुछ सीख सकते हैं। युवाओं के रोजगार का मुद्दा, राम मंदिर प्रसंग हो, नॉट बंदी, डिजिटल इंडिया या आर्थिक विकास दर हर तरफ दूसरों या अपनों किसी की बात न सुनकर हठ योग में ध्यान रमाया जा रहा है।
बहरहाल, कुछ योग हमने समझे, कुछ आप स्वयं समझदार हैं। यानी योग ही जीवन है। आप भी योग समझ गए हों, तो सरकार की वाह वाही में दो चार आसान और लगा लें। वैसे भी, आज (योग दिवस) से अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
हालांकि, कुछ ने हठ योग को तवज्जो दिया है और उनका कहना है, “भूखे भजन न होइ गोपाला, ले लो अपनी कंठी माला।”
■ सिद्धार्थ सिंह


No comments:
Post a Comment