बीते रिश्ते तलाश करती है,
खुशबू गुंचे तलाश करती है।
जब गुजरती है उस गली से सबा,
खत के पुर्जे तलाश करती है।
अपने माजी की जुस्तुजू में बहार,
पीले पत्ते तलाश करती है।
एक उम्मीद बार बार आ कर,
अपने टुकड़े तलाश करती है।
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है।
■ गुलजार
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