Pages

Pages

Pages

आंसुओं से इतना भय क्यों?

जो भी तुम्हारे पास है, आंसू उनमें सबसे अनूठी बात है। वास्तव में आसुओं का सुख या दुख से संबंध नहीं है, बल्कि यह तुम्हारे अंतस के छलकने का परिणाम है...

आंसुओं से कभी भी भयभीत मत होना। तथाकथित सभ्यता ने तुम्हें आंसुओं से अत्यंत भयभीत कर दिया है। इसने तुम्हारे भीतर एक तरह का अपराध भाव पैदा कर दिया है। खासकर तुम पुरुष हो तो, जब आंसू आते हैं, तब तुम शर्मिंदा महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि लोग क्या सोचते होंगे? मैं पुरुष होकर रो रहा हूं! तुम्हें लगता है यह कितना स्त्रैण और बचकाना है। ऐसा नहीं होना चाहिये। तुम उन आंसुओं को रोक लेते हो… और तुम उसकी हत्या कर देते हो, जो तुम्हारे भीतर पनप रहा होता है।
जो भी तुम्हारे पास है, आंसू उनमें सबसे अनूठी बात है, क्योंकि आंसू तुम्हारे अंतस के छलकने का परिणाम हैं। आंसू अनिवार्यत: दुख के ही द्योतक नहीं हैं; कई बार वे भावातिरेक से भी आते हैं, कई बार वे अपार शांति के कारण आते हैं, और कई बार वे आते हैं प्रेम व आनंद से। वास्तव में उनका दुख या सुख से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ भी जो तुम्हारे ह्रदय को छू जाये, कुछ भी जो तुम्हें अपने में आविष्ट कर ले, कुछ भी जो अतिरेक में हो, जिसे तुम समाहित न कर सको, बहने लगता है, आंसुओं के रूप में।
इन्हें अत्यंत अहोभाव से स्वीकार करो, इन्हें जीयो, उनका पोषण करो, इनका स्वागत करो और आंसुओं से ही तुम जान पाओगे प्रार्थना करने की कला।
■ ओशो

No comments:

Post a Comment