एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था। एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला।
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई, तो साधु ने कहा, “प्रभु ने बताया है कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष है और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पांच बोरी अनाज है। इसी लिए प्रभु तुम्हें थोड़ा अनाज ही देते हैं, ताकि तुम 60 वर्ष तक जीवित रह सको।”
समय बीता। एक दिन फिर साधु की मुलाकात उस लकड़हारे से हुई। इस बार लकड़हारे ने कहा- “ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो, तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुंचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।”अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढेर सारा अनाज पहुंच गया। लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया है। उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
कुछ दिन बाद साधु फिर लकड़हारे से मिलें, तो लकड़हारे ने कहा, “ऋषिवर!आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पांच बोरी अनाज है, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पांच बोरी अनाज आ जाता है।”
साधु ने समझाया, “तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया, इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।”
कथासार, हम किसी को कुछ दे रहे हैं, तो वह हमारा सामर्थ नहीं है, बल्कि परमात्मा ने मनुष्य को निमित्त मात्र बनाया है। ताकि मनुष्य के जरिए सभी प्राणियों की जरूरत पूरी कर सके।
दान किए से जाए दुःख, दूर होएं सब पाप।
नाथ आकर द्वार पे, दूर करें संताप॥
ऊं तत्सत...
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