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काशी सत्संग: प्रभु की सीख


एक भिखारी था। उसे ठीक से खाने-पीने तक को नहीं मिलता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था। उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी। उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी। उसे कोढ़ हो गया था। बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था। एक युवक उस रास्ते से रोज गुजरता था। भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता। उसका मन बहुत ही दुखी होता। वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते?
एक दिन उससे न रहा गया। वह भिखारी के पास गया और बोला- बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है, फिर भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले?
भिखारी ने उत्तर दिया- भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है। मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं। शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और सबक लें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जब वे मेरी तरह हो सकते हैं। इसी लिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए।
लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया। उसने जो कहा था, उसमें कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी। यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं।
ऊं तत्सत...

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