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काशी सत्संग:“भलाई”


अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:
स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।
भावार्थ : जो पुरुष कर्म फल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभ कर्म करता रहता है, परोपकार ही जिसके जीवन का ध्येय है, वही सच्चा सन्यासी है। कर्मों का त्याग सन्यास नहीं, अपितु अशुभ कर्मों का त्याग सन्यास है। दुनिया का त्याग करना सन्यास नहीं है, अपितु दुनिया के लिए त्याग करना यह अवश्य सन्यास है।

एक आदमी ने एक पेंटर को अपने घर बुलाया और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो। पेंटर ने नाव को पेंट कर दिया, फिर अपने पैसे लिए और चला गया। अगले दिन, नाव का मालिक पेंटर के घर पहुंच गया और उसे एक बहुत बड़ी धनराशी दिया। पेंटर भौंचक्का हो गया। उसने पूछा - ये किस बात के पैसे हैं? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था! मालिक ने कहा- ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है। पेंटर ने कहा- अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है।
मालिक ने कहा- दोस्त, तुम समझे नहीं मेरी बात! अच्छा मैं विस्तार से समझाता हूं। मैंने तुम्हें नाव पेंट करने के लिए कहा तो जल्दबाजी में उस छेद के बारे में बताना भूल गया। जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर नौकायन के लिए निकल गए। मैं उस वक्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए हैं! तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है। मैं भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे। अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो। फिर मैंने छेद देखा, तो पता चला कि मेरे बताए बिना तुम उसको ठीक कर चुके हो। मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं।
जीवन में "भलाई का कार्य" जब मौका मिले हमेशा कर देना चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य ही क्यों न हो! क्योंकि कभी-कभी वो छोटा सा कार्य भी किसी के लिए बहुत अमूल्य हो सकता है।
ऊं तत्सत...

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