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काशी सत्संग: दयालु प्रभु


भगवान श्रीकृष्ण का एक अनन्य भक्त था। बड़ी लगन से उनकी सेवा-पूजा करता था। एक दिन उसने भगवान से कहा, “प्रभु मैं आपकी इतनी सेवा करता हूं, पूजा करता हूं, तो प्रभुजी कम से कम एक बार तो दर्शन दीजिए। अगर दर्शन नहीं तो कुछ ऐसा कीजिए जिससे मुझे आभास हो आप मेरे साथ हैं।” श्रीकृष्ण ने उसे स्वप्न में आकर कहा कि अब से तुम जब समंदर किनारे टहलोगे तुम्हें चार पैरों के निशान दिखाई देंगे। दो तुम्हारे होंगे और दो मेरे। ऐसा ही हुआ, जब वो समंदर किनारे चलता तो उसे चार पैरों के निशान दिखाई देते। उसे ये देख के काफी अच्छा लगता। रोज वो ऐसा करने लगा।
कुछ दिनों बाद अचानक उसका व्यापार डूब गया। उसके सभी मित्रों, परिजनों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वो समंदर किनारे चलता तो उसे सिर्फ दो ही पैर दिखाई देते। उसे इस बात से बहुत तकलीफ हुई कि बुरे वक्त में तो लोगों ने मेरा साथ छोड़ा ही भगवान ने भी  छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद फिर सब कुछ ठीक हो गया। उसका व्यापार भी चलने लगा, तो फिर उसे दो की जगह चार पैरों के निशान दिखने लगे।
भक्त ने श्रीकृष्ण की प्रार्थना की और कहा,“ हे प्रभु! मुझे इस बात का बुरा नहीं लगा की मेरे अपनों ने बुरे वक्त में मेरा साथ छोड़ दिया, लेकिन आपने भी मुझे छोड़ दिया।” उस रात उसके स्वप्न में द्वारिकाधीश आए और बोले, “तुम्हें जो दो पैरों के निशान संकट की घड़ी में दिखाई देते थे, वो तुम्हारे नहीं मेरे थे। मैंने तुम्हें गोद में उठा रख था। जब तुम्हारा बुरा वक्त समाप्त हो गया, तो मैंने तुम्हें गोद से नीचे उतार दिया।”
ऊं तत्सत...

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