जीवन बहुत सरल है, वह एक आनंदपूर्ण नृत्य है। पूरी पृथ्वी खुशी और नृत्य से सराबोर हो सकती है, लेकिन तुम्हें पहले अपने अंदर जमा कचरा बाहर फेंकना पड़ेगा...
ध्यान से शुरू करो और चीजें तुम्हारे भीतर विकसित होने लगेंगी। मौन, शांति,आनंद, संवेदनशीलता। और ध्यान से जो भी आता है उसे जीवन में लाने का प्रयास करो। उसे बांटो, क्योंकि जिसे भी बांटा जाता है वह तेजी से विकसित होता है। और जब तुम मृत्यु के बिंदु पर आते हो, तुम जान जाओगे कि कोई मृत्यु नहीं होती। तुम विदा ले सकते हो, उदासी के आंसू गिराने की जरूरत नहीं है; हां, खुशी के आंसू अवश्य हो सकते हैं, लेकिन दुख के नहीं। लेकिन तुम्हें शुरुआत निर्दोषिता से करनी होगी।
तो पहले तो पूरा कचरा बाहर फेंक दो, जिसे तुम ढो रहे हो। हर व्यक्ति इतना कूड़ा कर्कट ढो रहा है, और हैरानी होती है, किसलिए? सिर्फ इसलिए कि लोग तुम्हें बता रहे हैं कि ये महान अवधारणाएं हैं, सिद्धान्त हैं? तुम अपने साथ बुद्धिमानी से पेश नहीं आते हो। अपने साथ बुद्धिमानी रखो।
जीवन बहुत सरल है, वह एक आनंदपूर्ण नृत्य है। पूरी पृथ्वी खुशी और नृत्य से सराबोर हो सकती है, लेकिन ऐसे लोग हैं, जिनका स्वार्थ इसमें निहित है कि कोई भी जीवन का आनंद न लें। कोई मुस्कुराए न, कोई हंसे न और कि जिंदगी एक पाप है, एक सजा है। जब ऐसा माहौल हो कि तुमसे निरंतर यही कहा गया है कि यह एक सजा है, तो तुम आनंद कैसे ले सकते हो? कहा जाता है कि तुम इसलिए पीड़ा भोग रहे हो, क्योंकि तुमने गलत काम किए हैं और यह एक तरह की कैद है जिसमें तुम्हें कष्ट उठाने के लिए डाला गया है।
मैं तुमसे कहता हूं कि जिंदगी एक कैद नहीं है, एक सजा नहीं है। वह एक पुरस्कार है और वह उन्हीं को दिया जाता है जो उसके लायक हैं। इसे भोगना तुम्हारा हक है; यदि तुम नहीं भोगते हो तो वह पाप होगा। यदि तुम उसे सुंदर नहीं बनाते, उसे वैसा ही छोड़ते हो जैसा तुम्हें मिला था तो यह अस्तित्व के खिलाफ होगा। नहीं, उसे थोड़ा और प्रसन्न, थोड़ा और सुंदर, थोड़ा और सुगंधित बनाकर छोड़ो।
■ सौजन्य से: ओशो इंटरनेशनल न्यूज लेटर
ध्यान से शुरू करो और चीजें तुम्हारे भीतर विकसित होने लगेंगी। मौन, शांति,आनंद, संवेदनशीलता। और ध्यान से जो भी आता है उसे जीवन में लाने का प्रयास करो। उसे बांटो, क्योंकि जिसे भी बांटा जाता है वह तेजी से विकसित होता है। और जब तुम मृत्यु के बिंदु पर आते हो, तुम जान जाओगे कि कोई मृत्यु नहीं होती। तुम विदा ले सकते हो, उदासी के आंसू गिराने की जरूरत नहीं है; हां, खुशी के आंसू अवश्य हो सकते हैं, लेकिन दुख के नहीं। लेकिन तुम्हें शुरुआत निर्दोषिता से करनी होगी।
तो पहले तो पूरा कचरा बाहर फेंक दो, जिसे तुम ढो रहे हो। हर व्यक्ति इतना कूड़ा कर्कट ढो रहा है, और हैरानी होती है, किसलिए? सिर्फ इसलिए कि लोग तुम्हें बता रहे हैं कि ये महान अवधारणाएं हैं, सिद्धान्त हैं? तुम अपने साथ बुद्धिमानी से पेश नहीं आते हो। अपने साथ बुद्धिमानी रखो।
जीवन बहुत सरल है, वह एक आनंदपूर्ण नृत्य है। पूरी पृथ्वी खुशी और नृत्य से सराबोर हो सकती है, लेकिन ऐसे लोग हैं, जिनका स्वार्थ इसमें निहित है कि कोई भी जीवन का आनंद न लें। कोई मुस्कुराए न, कोई हंसे न और कि जिंदगी एक पाप है, एक सजा है। जब ऐसा माहौल हो कि तुमसे निरंतर यही कहा गया है कि यह एक सजा है, तो तुम आनंद कैसे ले सकते हो? कहा जाता है कि तुम इसलिए पीड़ा भोग रहे हो, क्योंकि तुमने गलत काम किए हैं और यह एक तरह की कैद है जिसमें तुम्हें कष्ट उठाने के लिए डाला गया है।
मैं तुमसे कहता हूं कि जिंदगी एक कैद नहीं है, एक सजा नहीं है। वह एक पुरस्कार है और वह उन्हीं को दिया जाता है जो उसके लायक हैं। इसे भोगना तुम्हारा हक है; यदि तुम नहीं भोगते हो तो वह पाप होगा। यदि तुम उसे सुंदर नहीं बनाते, उसे वैसा ही छोड़ते हो जैसा तुम्हें मिला था तो यह अस्तित्व के खिलाफ होगा। नहीं, उसे थोड़ा और प्रसन्न, थोड़ा और सुंदर, थोड़ा और सुगंधित बनाकर छोड़ो।
■ सौजन्य से: ओशो इंटरनेशनल न्यूज लेटर
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