एक गांव में एक लक्ष्मीनारायण का मंदिर था और उसके बगल में शिवालय था। इन मंदिरों के बाहर एक वृद्धा फूल बेचती थी। एक दिन वृद्धा के पास फूल कम पड़ गए। तभी वहां एक शिवभक्त आया और फूल मांगने लगा।
उसी समय एक नारायण भक्त ने भी फूलों की मांग की। वह वृद्धा बोली- मैं फूल किसे दूं। मेरे पास दोनों को देने लायक फूल तो हैं नहीं। इस पर शिवभक्त बोला- तुम मुझे फूल दो। भगवान महादेव को फूलों की अधिक जरूरत है। यह सुनकर नारायण भक्त बोला- ऐसा नहीं हो सकता। फूल मुझे चाहिए।
महादेव का क्या है, फूल नहीं है, तो भभूत ही मल दें। यह सुनकर शिवभक्त नाराज हो गया और बोला- अरे मूर्ख, शंकर तो जरा-सा नाम-जाप से ही प्रसन्न हो जाते हैं, पर तुम्हारे नारायण तो उम्र बीतने पर भी भक्त की बात नहीं सुनते। नारायण भक्त चिल्ला पड़ा।
क्या बढ़-चढ़कर बातें करता है? नंग-मलंग, गले में सांप, सारे शरीर पर भभूत, आसपास भूतों का डेरा, यह भी कोई भगवान हैं? इस प्रकार दोनों परस्पर शैव व वैष्णव मत की निंदा करने लगे। तभी एक तीसरा व्यक्ति वृद्धा से फूल लेकर चला गया। उस दिन गांव में महामंडलेश्वर धर्माचार्यजी आए हुए थे, जो शिवालय के दर्शन कर लक्ष्मीनारायण मंदिर की ओर जा रहे थे। उन्होंने दोनों से कहा- मैं शिवालय से आ रहा हूं और अब नारायण मंदिर में जा रहा हूं। तुम दोनों भी मेरे साथ आओ। जहां सच्चा धर्म होता है, वहां झगड़े नहीं होते हैं।
ऊं तत्सत...
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