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काशी सत्संग: सच्ची सुंदरता


एक बार एक राज्य के राजा ने घोषणा   करा दी कि जिसके हाथ सबसे सुंदर होंगे, उनको इनाम मिलेगा। घोषणा के बाद से राज्य में सभी अपने हाथों की देखभाल में लग गए। कोई दिन में चार बार हाथ धोता, कोई हल्दी-चन्दन का लेप लगाता। कइयों ने तो काम करना बिलकुल ही बंद कर दिया।                     फिर निर्णय का दिन आ पहुंचा। सभी राज दरबार में इनाम जीतने की लालसा लिए पहुंचे। सभी को अपने हाथ आगे करके पंक्ति में खड़े होने को कहा गया। सभी अपने हाथ आगे करके खड़े  हो गए। अब सबके हाथों की जाँच शुरू हुई। तभी एक बच्ची भागी भागी आई और कतार में हाथ आगे कर के खड़ी हो गई। बच्ची बोली, “माफ कर दें महाराज! खेत से आने में थोड़ी देर हो गई। राजा ने सभी का हाथ देखा फिर अपना निर्णय सुनाया कि इस प्रतियोगिता की विजेता वो लड़की है।  सबमें कोतुहल मच गया कि ऐसा कैसे हो सकता है? उसके हाथ तो गंदे हैं और खुरदुरे भी हैं। फिर भी पुरष्कार उसको कैसे मिल गया।
राजा सब समझ गए, तब उन्होंने कहा, “मेरा निर्णय कोई गलत नहीं है। हाथों की सच्ची सुंदरता उसके काम करने में है।” यह सुनकर सबको अपनी गलती का अहसास हुआ और लोगों ने लड़की को जीत की बधाई दी। मित्रों, प्रभु ने मनुष्य का निर्माण कर्म के लिए किया है, लेकिन कुछ लोग इस बात को समझ नहीं पाते। श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है-
“अपहाय निजं कर्म कृष्ण कृष्णेति वादिनः। 
ते हरेद्वेंषिणः पापाः धर्मार्थे जन्म यद्वरेः॥”
ऊं तत्सत...

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