एक बार गुरुजी ने अपने छात्रों को कुछ टमाटर लाने को कहा। लेकिन हर टमाटर को एक सफेद लिफाफे में पैक करना था। और उस लिफाफे पर उस व्यक्ति का नाम लिखना था, जिससे छात्र को घृणा या नाराजगी हो। गुरुजी ने छात्रों को यह हिदायत भी दी कि छात्र को जितने व्यक्तियों से घृणा या नाराजगी हो, उतने टमाटर लिफाफे में रखने हैं।
अब अगले दिन सभी छात्र गुरुजी के निर्देशानुसार सफेद लिफाफों में टमाटर भरकर ले आएं। कुछ के लिफाफे में एक, कुछ में दो, कुछ चार, तो कुछ छात्रों के लिफाफे में 10-12 तक भी टमाटर थे। कुछ छात्र ऐसे भी थे, जिनके पास कोई लिफाफा नहीं था। उन्होंने गुरुजी को बताया कि उन्हें किसी से कोई नाराजगी या घृणा नहीं है।
गुरुजी ने सभी छात्रों को एक-एक कपड़े का थैला देते हुए अपने लिफाफे उसमें रखने के निर्देश दिए। जो छात्र टमाटर नहीं लाए थे, उन्हें गुरुजी ने थैले में गुलाब के फूल दिए। गुरुजी ने आदेश दिया, “ये थैले जिसमें टमाटर या गुलाब हैं, इन्हें अच्छी तरह से बन्द कर दस दिन तक लगातार अपने पास रखना है। जहां भी जाएं थैला अपने साथ रखें।”
एक सप्ताह बाद ही गुरुजी ने पूछा, “क्यों बच्चों थैला साथ है न? कैसा लग रहा है?” टमाटर लिए छात्र दुखी स्वर से बोल उठे, “गुरुजी, टमाटरों की दुर्गन्ध और वजन से परेशानी हो रही है।” जबकि, गुलाब लिए छात्र बोले,“गुरुजी, हमें कोई परेशानी नहीं, थैला हल्का है,और भीनी-भीनी खुशबू भी आ रही है।”
अब गुरुजी ने छात्रों को समझाया, “जिनके पास घृणा, नफरत या नाराजगी रूपी टमाटर थे, वे सभी परेशान हुए, जबकि जिनके पास घृणा-नफरत या नाराजगी नहीं थी, वे सब खुश हैं। यह बिल्कुल वैसा ही है कि तुम अपने हृदय में किसी भी व्यक्ति के लिए क्या रखते हो? यदि घृणा या नाराजगी रखोगे, तो वजन और दुर्गन्ध रूपी परेशानी उठानी पड़ेगी। वहीं यदि किसी से प्रेम-प्यार- अपनापन रखोगे, तो हल्कापन और सुगन्ध रूपी प्रसन्नता मिलेगी।”
गुरुजी ने आगे समझाया, “एक सप्ताह में ही टमाटरों की दुर्गन्ध और वजन से परेशान हो गए, तो सोचो प्रतिदिन तुम जो अपने साथ घृणा और नाराजगी रूपी दुर्गन्ध और वजन रखते हो, तो तुम अपना कितना नुकसान करते हो। तुम्हारा हृदय तो एक सुन्दर बगिया है, जिसमें सुगन्धित और हल्के गुलाब होने चाहिए न कि सड़े हुए दुर्गन्धित और भारी टमाटर। जिनसे भी तुम्हें घृणा या नाराजगी है उन्हें क्षमा दान देकर गले लगाओ। फिर देखो तुम्हारे जीवन में गुलाब रूपी सुगन्ध प्रसन्नता भर देगी।”
ऊं तत्सत...
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