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काशी सत्संग: अच्छाई क्यों तजूं!


एक बार एक संत अपने कुछ मित्रों के साथ दरिया के किनारे बेठे थे, उनकी  नजर एक बिच्छू पर पड़ी, जो पानी में डूब रहा था। संत ने उसे डूबने से बचाने के लिए पकड़ा, तो बिच्छू ने डंक मार दिया। कुछ देर बाद वो दोबारा पानी में जा गिरा, इस बार फिर संत उसे बचने के लिए आगे बढ़े। और आदत अनुसार उसने फिर डंक मार दिया। चार बार ऐसा ही हुआ। तब एक मित्र से रहा न गया। उसने पूछा, “ आपका यह काम हमारी समझ के बाहर है। ये आपको बार-बार डंक मार रहा है और आप इसे बचने से बाज नहीं आते।” संत ने बहुत तकलीफ में मुस्कुराते हुए कहा कि जब ये बुराई से बाज नहीं आता, तो मैं अच्छाई से क्यूं बाज आऊं!”
रहीम ने कहा है,
“गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि,
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी।”
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार लोग रस्सी के कुएँ से पानी निकाल लेते हैं, उसी प्रकार अच्छे गुणों द्वारा दूसरों के ह्रदय में अपने लिए प्रेम उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि किसी का हृदय कुएँ से अधिक गहरा नहीं होता।
ऊं तत्सत...

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