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काशी सत्संग: ‘एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति’


रामकृष्ण परमहंस एक बार प्रसिद्ध नागा गुरु के साथ बैठे थे। माघ का महीना था और धूनी जल रही थी। ज्ञान की बातें हो रही थीं। तभी एक माली वहां से गुजरा और उसने धूनी से अपनी चिलम में भरने के लिए कुछ कोयले ले लिए। माली द्वारा इस तरह पवित्र धूनी को छूना नागा गुरु को बहुत बुरा लगा। उन्होंने न केवल माली को भला-बुरा कहा, बल्कि उसे दो-तीन थप्पड़ भी मार दिए। माली परमहंस की धूनी से अक्सर कोयले लेकर चिलम भरा करता था। इस पर रामकृष्ण परमहंस जोर-जोर से हंसने लगे।
रामकृष्ण को हंसता देख कर नागा गुरु ने उनसे सवाल किया- “इस माली ने पवित्र अग्नि को छूकर अपवित्र कर दिया, पर तुम हंस रहे हो।” परमहंस ने जवाब दिया- “मुझे नहीं पता था कि किसी के छूने भर से कोई वस्तु अपवित्र हो जाती है। अभी तक आप ‘एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति’ कहकर मुझे ज्ञान दे रहे थे कि समस्त विश्व एक ही परब्रह्म के प्रकाश से प्रकाशमान है, लेकिन आपका यह ज्ञान तब कहां चला गया, जब आपने मात्र धूनी की अग्नि छूने के बाद माली को पीट दिया।” यह सुनकर नागा गुरु को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने माली को बुलाकर उससे क्षमा मांगी और प्रतिज्ञा की कि आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे।
ऊं तत्सत...

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