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काशी सत्संग: शुद्ध हृदय की प्रार्थना

समर्थ रामदास ऊंचे दर्जे के संत हुए हैं। वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भर लेते थे
और भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन वे भिक्षा मांगते हुए एक घर पर पहुंचे। वहां उन्होंने जैसे ही आवाज लगाई कि घर की स्त्री का पारा चढ़ गया। वह चौका लीप रही थी। आवाज सुनते ही वह पोतना लेकर बाहर आई और स्वामीजी पर फेंककर बोली- ले, इसे ले जा।
स्वामीजी इस पर जरा भी दुखी नहीं हुए। पोतना लेकर वे नदी पर गए। वहां जाकर अपना बदन धोया और पोतना साफ किया। रात को उसी पोतने में से एक टुकड़ा फाड़कर बत्ती बनाई और घी में भिगोकर दीपक जलाकर भगवान की आरती की, फिर प्रार्थना की- हे प्रभो! इस दीपक के प्रकाश से जैसे यहां का अंधकार दूर हो गया है, वैसे ही इस वस्त्र को देने वाली माता के हृदय का अंधकार भी दूर हो।
अगले दिन देखते क्या हैं कि वह स्त्री उनके आश्रम में आई और अपने किए पर पछतावा करने लगी। शुद्ध हृदय से की गई प्रार्थना का का प्रभाव जरूर पड़ता है।
ऊं तत्सत...

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