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काशी सत्संग: मूर्तिकार की मौत

एक बहुत बड़ा मूर्तिकार हुआ। उसकी बड़ी ख्याति थी। दूर-दूर के देशों तक उसकी कला के पारखी और प्रशंसक थे। वे उसकी कला देखने आते और दांतों तले उंगलियां दबा लेते। लोग कहते थे कि अगर वह किसी की मूर्ति बना दे और उस मूर्ति के बगल में वह आदमी सांस रोककर खड़ा हो जाए, जिसकी मूर्ति है, तो बताना मुश्किल है कि असली आदमी कौन है और मूर्ति कौन है?
मूर्तिकार के मौत की घड़ी करीब आई। उसने सोचा कि अपनी कला से क्यों न मौत को ही धोखा दिया जाए? उसने अपनी ही ग्यारह मूर्तियां बनाकर तैयार कर लीं। जब यमदूत आए, तो वह उन ग्यारह मूर्तियों के साथ छिप कर खडा हो गया। यमदूतों ने देखा कि वहां एक जैसे बारह इंसान हैं। यमदूत को भी भ्रम हो गया। एक को लेने आए थे, बारह लोग खड़े हैं। किसको ले जाए?
फिर कौन असली है? कहीं चूक से गलत प्राण न हर लें। यमदूत वापस लौटे और परमात्मा से कहा कि बड़ी मुश्किल पड़ गई है। वहां एक जैसे बारह लोग हैं! असली की पहचान कैसे हो?
परमात्मा ने उसके कान में एक सूत्र दिया और कहा- इसे सदा याद रखना। जब भी असली और नकली के बीच में से असली को खोजना हो। यमदूत वापस लौटे। फिर उस कमरे में गए। मूर्तियों को देखा और कहा-मूर्तियां बनी तो बहुत सुंदर हैं, पर मूर्तिकार से सिर्फ एक भूल रह गई। काश वह भूल न हुई होती, तो ये मूर्तियां संसार की सर्वश्रेष्ठ होतीं। मूर्तियों के बीच सांसे रोके खड़ा चित्रकार सुनते ही बोल उठा- कौन सी भूल?
यमदूतों ने कहा- यही कि तुम स्वयं को नहीं भूल सकते। बाहर आ जाओ। परमात्मा ने बताया कि जो स्वयं को नहीं भूल सकता, उसे तो मरना ही पड़ेगा और जो अपने को भूल जाए, उसे मारने का कोई उपाय ही नहीं। वह अमृत को उपलब्ध हो जाता है।
मृत्यु लोक में जो भी आएगा उसे मरना ही है। परमात्मा स्वयं भी इस नियम से बंधे हैं। उन्हें भी शरीर त्यागना पड़ा। फिर भी इंसान अमर हो सकता है- अपने कर्मों से। कर्मों से अर्जित यश उसे अमर बना सकते हैं।
ऊं तत्सत…

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