दुख पर ध्यान दोगे तो हमेशा दुखी रहोगे, सुख पर ध्यान देना शुरू करो। दअसल, तुम जिस पर ध्यान देते हो वह चीज सक्रिय हो जाती है। ध्यान सबसे बड़ी कुंजी है...
कभी लगता है कि तुम दुख में मजा लेने वाले हो, तुम्हें कष्ट से प्रेम है। दुख से लगाव होना एक रोग है, यह विकृत प्रवृत्ति है, यह विक्षिप्तता है। पर मुश्किल यह है कि सिखाया यही गया है। असल में स्वस्थ व्यक्ति जिंदगी का मजा लेने में इतना व्यस्त रहता है कि वह दूसरों पर हावी होने की फिक्र ही नहीं करता।
अस्वस्थ व्यक्ति मजा ले ही नहीं सकता, इसलिए वह अपनी सारी ऊर्जा वर्चस्व कायम करने में लगा देता है। जो गीत गा सकता है, जो नाच सकता है, वह नाचेगा और गाएगा, वह सितारों भरे असामान के नीचे उत्सव मनाएगा। लेकिन जो नाच नहीं सकता, जो वह कुटिल बन जाएगा। जो रचनाशील है, वह रचेगा। जो नहीं रच सकता, वह नष्ट करेगा, क्योंकि उसे भी तो दुनिया को दिखाना है कि वह भी है।
जरा इसके पीछे का कारण देखो। अगर वह खुद जिंदगी का मजा नहीं ले सकता, तो वह कम से कम तुम्हारे मजे में जहर तो घोल ही सकता है। इसी लिए सभी तरह के असंतुष्ट और रचनाविहीन बस कुछ न कुछ नकारात्मक खोजते रहते हैं।
अब तुम पूछोगे कि तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं कहूंगा कि दुख के प्रति अपनी आसक्ति त्याग दो और जीवन से प्रेम करो, और अधिक खुश रहो। जब तुम एकदम प्रसन्न होते हो, संभावना तभी होती है, वरना नहीं। कारण यह है कि दुख तुम्हें बंद कर देता है, सुख तुम्हें खोलता है। क्या तुमने यही बात अपने जीवन में नहीं देखी? जब भी तुम दुखी होते हो, बंद हो जाते हो, एक कठोर आवरण तुम्हें घेर लेता है। तुम खुद की सुरक्षा करने लगते हो, तुम एक कवच-सा ओढ़ लेते हो। वजह यह है कि तुम जानते हो कि तुम्हें पहले से काफी तकलीफ है और अब तुम और चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते। दुखी लोग हमेशा कठोर हो जाते हैं। उनकी नरमी खत्म हो जाती है, वे चट्टानों जैसे हो जाते हैं।
एक प्रसन्न व्यक्ति तो एक फूल की तरह है। उसे ऐसा वरदान मिला हुआ है कि वह सारी दुनिया को आशीर्वाद दे सकता है। वह ऐसे वरदान से संपन्न है कि खुलने की जुर्रत कर सकता है। उसके लिए खुलने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सभी कुछ कितना अच्छा है, कितना मित्रतापूर्ण है। पूरी प्रकृति उसकी मित्र है। वह क्यों डरने लगा? वह खुल सकता है। वह इस अस्तित्व का आतिथेय बन सकता है। वही होता है वह क्षण जब दिव्यता तुममें प्रवेश करती है। केवल उसी क्षण में प्रकाश तुममें प्रवेश करता है, और तुम बुद्धत्व प्राप्त करते हो।
सौजन्य: ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
कभी लगता है कि तुम दुख में मजा लेने वाले हो, तुम्हें कष्ट से प्रेम है। दुख से लगाव होना एक रोग है, यह विकृत प्रवृत्ति है, यह विक्षिप्तता है। पर मुश्किल यह है कि सिखाया यही गया है। असल में स्वस्थ व्यक्ति जिंदगी का मजा लेने में इतना व्यस्त रहता है कि वह दूसरों पर हावी होने की फिक्र ही नहीं करता।
अस्वस्थ व्यक्ति मजा ले ही नहीं सकता, इसलिए वह अपनी सारी ऊर्जा वर्चस्व कायम करने में लगा देता है। जो गीत गा सकता है, जो नाच सकता है, वह नाचेगा और गाएगा, वह सितारों भरे असामान के नीचे उत्सव मनाएगा। लेकिन जो नाच नहीं सकता, जो वह कुटिल बन जाएगा। जो रचनाशील है, वह रचेगा। जो नहीं रच सकता, वह नष्ट करेगा, क्योंकि उसे भी तो दुनिया को दिखाना है कि वह भी है।
जरा इसके पीछे का कारण देखो। अगर वह खुद जिंदगी का मजा नहीं ले सकता, तो वह कम से कम तुम्हारे मजे में जहर तो घोल ही सकता है। इसी लिए सभी तरह के असंतुष्ट और रचनाविहीन बस कुछ न कुछ नकारात्मक खोजते रहते हैं।
अब तुम पूछोगे कि तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं कहूंगा कि दुख के प्रति अपनी आसक्ति त्याग दो और जीवन से प्रेम करो, और अधिक खुश रहो। जब तुम एकदम प्रसन्न होते हो, संभावना तभी होती है, वरना नहीं। कारण यह है कि दुख तुम्हें बंद कर देता है, सुख तुम्हें खोलता है। क्या तुमने यही बात अपने जीवन में नहीं देखी? जब भी तुम दुखी होते हो, बंद हो जाते हो, एक कठोर आवरण तुम्हें घेर लेता है। तुम खुद की सुरक्षा करने लगते हो, तुम एक कवच-सा ओढ़ लेते हो। वजह यह है कि तुम जानते हो कि तुम्हें पहले से काफी तकलीफ है और अब तुम और चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते। दुखी लोग हमेशा कठोर हो जाते हैं। उनकी नरमी खत्म हो जाती है, वे चट्टानों जैसे हो जाते हैं।
एक प्रसन्न व्यक्ति तो एक फूल की तरह है। उसे ऐसा वरदान मिला हुआ है कि वह सारी दुनिया को आशीर्वाद दे सकता है। वह ऐसे वरदान से संपन्न है कि खुलने की जुर्रत कर सकता है। उसके लिए खुलने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सभी कुछ कितना अच्छा है, कितना मित्रतापूर्ण है। पूरी प्रकृति उसकी मित्र है। वह क्यों डरने लगा? वह खुल सकता है। वह इस अस्तित्व का आतिथेय बन सकता है। वही होता है वह क्षण जब दिव्यता तुममें प्रवेश करती है। केवल उसी क्षण में प्रकाश तुममें प्रवेश करता है, और तुम बुद्धत्व प्राप्त करते हो।
सौजन्य: ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
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