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काशी सत्संग: ...का करि सकत कुसंग

एक बार की बात है। एक शराबी अपनी शराब पीने की आदत से बहुत परेशान था। एक दिन वह एक महात्मा के पास गया और बोला- मैं शराब पीने की अपनी आदत से बहुत दुखी हूं। इसके कारण मेरा घर बर्बाद हो गया है। मेरे बच्चे भूख से मर रहे हैं। मेरे घर की शांति नष्ट हो गई है। आप ही बताइए। अब मैं क्या करूं?
महात्मा ने कहा- अगर तुम्हें शराब से इतनी परेशानी है। तुम इसे छोड़ क्यों नहीं देते? उस आदमी ने कहा- मैं शराब को छोड़ना चाहता हूं, लेकिन ये मुझे नहीं छोड़ रही है। महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है। तुम कल आना। मैं तुम्हें शराब को छोड़ने का तरीका बता दूंगा।
अगले दिन वह आदमी फिर से उस महात्मा के पास पहुंचा। उस आदमी को देखते ही महात्मा खड़े हुए और पास के ही एक पेड़ से चिपक गए। वह आदमी चुपचाप खड़े होकर उस महात्मा को देखता रहा। जब काफी समय बीत गया, तो उस आदमी ने महात्मा से कहा- अपने इस पेड़ को क्यों पकड़ रखा है? महात्मा ने कहा- मैंने इस पेड़ को नहीं पकड़ रखा है, बल्कि इस पेड़ ने मुझे ही पकड़ रखा है।
उस आदमी ने आश्चर्य के साथ उस महात्मा से कहा- मैं शराबी हूं, मुर्ख नहीं। इस पेड़ ने आपको नहीं पकड़ रखा है, बल्कि आपने ही पेड़ को पकड़ रखा है। आप जब चाहे इसे छोड़ सकते हैं। यह सुनते ही उस महात्मा ने पेड़ को छोड़ दिया।
उस महात्मा ने कहा- जिस तरह मुझे पेड़ ने नहीं पकड़ा था, ठीक उसी तरह शराब ने तुम्हें नहीं पकड़ रखा है, बल्कि तुमने ही शराब को पकड़ रखा है। तुम जब चाहो इसे छोड़ सकते हो। रहीम ने भी कहा है-
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग,
चंदन विष व्याप्त नहीं, लपटे रहत भुजंग।
ऊं तत्सत...

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