शायद...
रात भर बरसती रही अधघुली चाँदनी
किसी की मुहब्बत का पैग़ाम लाई थी,
शायद...
हक़ीक़त के कमजोर किवाड़ों को तोड़कर
खवाबों का जश्न था,
शायद...
नाफ़रमानी की तबस्सुम और एक महिवाल
बंदिशे शोख़ का कमज़र्फ़ साया था,
शायद...
अधखुळी आँख कि कोई एक झपकी
किसी की जागती रातो का सुकून था,
शायद...
इस मौज़ू को किस तहर समझाऊ
हकीकत नहीं केवल ख़्वाब था,
शायद... !!
- सिद्धार्थ सिंह 'शून्य'
रात भर बरसती रही अधघुली चाँदनी
किसी की मुहब्बत का पैग़ाम लाई थी,
शायद...
हक़ीक़त के कमजोर किवाड़ों को तोड़कर
खवाबों का जश्न था,
शायद...
नाफ़रमानी की तबस्सुम और एक महिवाल
बंदिशे शोख़ का कमज़र्फ़ साया था,
शायद...
अधखुळी आँख कि कोई एक झपकी
किसी की जागती रातो का सुकून था,
शायद...
इस मौज़ू को किस तहर समझाऊ
हकीकत नहीं केवल ख़्वाब था,
शायद... !!
- सिद्धार्थ सिंह 'शून्य'