काशी में न पाप का भय है, न यमराज का भय है एवं न गर्भवास का ही भय है, ऐसी नगरी का आश्रय कौन नहीं लेना चाहता?
योजनानां शतस्थोऽपि विमुक्तमं संस्मरेद्यपि।
बहुपातकपूर्णोऽपि पदं गच्छत्यनामयम्।।
(नारद पुराण)
एक सौ योजन पर स्थित रहने पर भी जो श्री काशी का स्मरण करता है, बहुत पापकर्मो से पूर्ण होने पर भी समग्र पापों से रहित हो जाता है।
गच्छता तिष्ठता वापि स्वप्ता जाग्रताथवा।
काशीत्येष महामंत्रों येन जप्तः स निर्गमः।।
(काशी खण्ड)
जो प्राणी चलते, स्थिर रहते, सोते और जागते हुए समय 'काशी' इस दो अक्षरों के महामन्त्र को जपते रहते हैं, वे इस कराल संसार में निर्भय रहते हैं, अर्थात् इस असार संसार से मुक्त हो जाते हैं।
(संदर्भ:काशी का माहात्म्य)
No comments:
Post a Comment