सनातन शास्त्रों के अनुसार काशी नगरी इस ब्रह्माण्ड में नहीं बसा, बल्कि भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसा है। इस लिए संत कहते है कि काशी में कोई पाप ना हो, इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए,क्योंकि तीर्थ स्थान पर किए गए पाप बज्रलेप हो जाते हैं, जिनका प्रायश्चित संभव नहीँ है।
अद्यारभ्य महाभागा ये स्मरिष्यन्ति काशिकाम्।
तेषां पापक्षयो भूयान् मोक्षबीजं भवत्वनु।।
तीर्थयात्रार्थिनो ये हि काश्यामागत्य धार्मिका।।
(पदम् पुराण)
आज से जो मनुष्य काशी का स्मरण करेंगे, उनके पाप नष्ट हो जाएंगे तत्पश्चात् वही उनके मोक्ष का कारण बन जायेगा। जो धर्म की भावना से तीर्थयात्रा के रूप में काशी आते हैं, वे भी इस लाभ को प्राप्त कर लेंगे।
तेषां पापक्षयो भूयान् मोक्षबीजं भवत्वनु।।
तीर्थयात्रार्थिनो ये हि काश्यामागत्य धार्मिका।।
(पदम् पुराण)
आज से जो मनुष्य काशी का स्मरण करेंगे, उनके पाप नष्ट हो जाएंगे तत्पश्चात् वही उनके मोक्ष का कारण बन जायेगा। जो धर्म की भावना से तीर्थयात्रा के रूप में काशी आते हैं, वे भी इस लाभ को प्राप्त कर लेंगे।
ते पुनःकशिकां प्राप्य जितेन्द्रियमनोगुणाः।
भवन्ति शुद्धा: शुद्धात्मन् ! शुद्धब्रह्मस्वरूपिणः।।
स्मरणं कीर्तनं काश्यां दर्शनं मोक्षबीजकृत।।
(काशी रहस्य)
काशी में आकर इन्द्रियों एवं मन को जीतकर शुद्ध एवं शुद्ध ब्रह्मस्वरूप वाले हो जाते हैं। काशी में (देवी-देवताओं) स्मरण, कीर्त्तन तथा दर्शन मोक्ष देने वाला है।
भवन्ति शुद्धा: शुद्धात्मन् ! शुद्धब्रह्मस्वरूपिणः।।
स्मरणं कीर्तनं काश्यां दर्शनं मोक्षबीजकृत।।
(काशी रहस्य)
काशी में आकर इन्द्रियों एवं मन को जीतकर शुद्ध एवं शुद्ध ब्रह्मस्वरूप वाले हो जाते हैं। काशी में (देवी-देवताओं) स्मरण, कीर्त्तन तथा दर्शन मोक्ष देने वाला है।
(काशी का माहात्म्य)
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