घुमक्कड़ साथी - Kashi Patrika

घुमक्कड़ साथी


मिर्ज़ापुर अहरौरा में स्थित श्रधा व आस्था का केंद्र माता भंडारी देवी का यह मंदिर जहा नवरात्र में भक्तो का जनसैलाब उमड़ता है कुलदेवी के रूप में विख्यात माँ भंडारी देवी का यह धाम जहा स्थानीय लोग ही नहीं दूर दूर से माता के दर्शन के लिए आते है

यह माता का मंदिर अहरौरा नगर के पूरब कोने में वाराणसी और उत्तर में शक्ति नगर पड़ता है माँ के दरबार में पहुचने के लिए चित-विश्राम एवं विधुत सबस्टेशन के समीप से एक पक्की सड़क गयी हुयी और इसी सड़क से माता के दरबार तक जाया जा सकता माता का दरबार उचे पहाड़ों पर स्थित है

माता के विषय में बुजर्गो और और वहा के लोग बताते है की इस दरबार में अन्न-धन का भण्डार लगा रहता है. और माँ के दरबार से गरीब असहाय किसान यहाँ से आनाज ले जाते थे और खेती के बाद पैदा होने वाले अनाज में से डेढ़ सवाया या अपनी समर्थ के अनुसार माँ के चरणों में चढ़ा देते थे. पर यह प्रथा धीरे धीरे लुप्त सी हो गयी.

यहाँ एक जल कुंड भी है जो की माँ के मंदिर के सामने स्थित है इसका पानी कभी नहीं सूखता चाहे कितनी तेज़ गर्मी क्यों न पड़े इस मंदिर से प्रकति का नज़ारा भी देखने को मिलता है ऊँचे ऊँचे पहाड़ों का नज़ारा तथा दक्षिण में स्थित अतिसुन्दर बाग़ बगीचें व सूर्य सरोवर जिसे देखने के लिए काफी पर्यटक आते है है साथ की मंदिर परिसर के पास सम्राट अशोक के शिलालेख भी है जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा सुरक्षित एवं संरक्षित किया गया है। 

बताया जाता है की पहाड़ी पर स्थित भंडारी माता की मूर्ति स्थापना मौर्य शासक अशोक के समय की गई थी। पहाड़ी पर उस समय के अभिलेख एवं राज्य चिह्न आज भी मिलते हैं। पुरातत्व विभाग को यहां से अशोक कालीन एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ था। मां भंडारी देवी की मूर्ति वाराणसी के विश्वनाथ गली स्थित देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति का प्रतिरूप हैं। 

कहते हैं कि एक बार काशी के विद्वानों व ब्राह्मणों ने भंडारी देवी को अन्नपूर्णा नाम से काशी ले जाने के लिए कठिन साधना एवं अनुष्ठान किया, किेतु देवी ने उनकी आहुति स्वीकार नहीं की और पहाड़ी पर ही रह गईं। भंडारी देवी के बारे में आज भी एक परंपरा जीवित है कि भंडारी माता हर तीसरे वर्ष सावन के महीने में अपने मायके चली जाती हैं और तमाम अनुष्ठान पूजन के बाद उनका डोला पुन: मायके से भंडारी पहाड़ी पर आता है।



वाही कुछ लोगो का यह भी कहना हैं की राजा कर्णपाल की बहन है माँ भंडारी देवी राजा कर्णपाल की बहन के रूप में चर्चित माँ भंडारी देवी को प्रतेक तीसरे वर्ष राजा कर्णपाल सह के अदृश्य किला बेलखरा के शियुर दक्षिण तरफ स्थित पहाड़ी से डोली में बिठा कर विदा कराकर लाने की प्रथा वर्षों से चली आ रही है।  




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