अगर मेरा मत माना जाए और उस का निष्पादन हो तो मैं आज भी आर्थिक रूप से कमजोर स्वर्णो के पक्ष में आरक्षण के साथ खड़ा दिखूंगा। मेरे लिए ये कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं है वरन सामाजिक मुद्दा है जो सत्य के पक्षकारो को अतिशीघ्र समझ में आयेगा या धरातल पे दिखाई देने लगेगा। हम सुयोजना पूर्ण मानसिक प्रतारणा के शिकार एक ऐसे वर्ग को जानबूझ कर पोषित होने दे रहे है जो कल राजनैतिक दलों का सबसे बड़ा वोट बैंक होने जा रहा है।
विपक्ष सत्ता पक्ष की इस चालाकी को समझने को तैयार ही नहीं है उसने कभी भी आर्थिक रूप से कमजोर स्वर्णो के आरक्षण का साथ नहीं दिया है लेकिन आज उसके सबसे बड़े विरोधी के रूप में नजर आ रहे है वही सत्ता पक्ष लोगो को ये विश्वास दिलाने में कामयाब है कि उन्हें आरक्षण को कभी ख़त्म नहीं करना है इस तरह वो एक तीर से दो शिकार की कहावत को चरितार्थ कर रहे एक और वो अपना तथाकथित दलित वोट बैंक बचाने में सफल है वही दूसरी ऒर हलकी हवा से स्वर्णो के सबसे बड़े पक्षकार के रूप में भी अपनी स्थिति पर कायम है।
इस सब राजनैतिक विफलताओं के बीच मध्यम वर्ग का एक बहुत बड़ा स्वर्ण तबका सुनियोजित तरीके से राजनीति की भेट चढ़ रहा है और समाज के सामाजिक मुद्दों के पैरोकार अपने स्थान विशेष पर चिपके हुए से प्रतीति हो रहे है जो स्वयं रूढ़ियों और दकियानूसी विचारधारा से प्रभावित दिखाई पड़ते है।
आज जब विश्व के हर देश न केवल उन लोगो को समझने और खोज निकालने में सक्षम है जिन्हे सरकार की वास्तविक आवश्यकता है बल्कि उसके निदान की और सफल कदम भी उठा रहे है वही आज हमारे सामाजिक पैरोकार और राजनैतिक दल कुत्सित मानसिकता के कारण एक बर्ग विशेष को वोट बैंक में बदल रहे है जिसके गंभीर परिणाम निकट भविष्य में दिखाई भी देने लगेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार है )
- संपादकीय
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