आज भी रहस्य बनी है ये बीमारी - Kashi Patrika

आज भी रहस्य बनी है ये बीमारी

ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है, जो बातचीत और दूसरे लोगों से व्यवहार करने की क्षमता को सीमित कर देता है। इसे ऑटिस्टिक स्पैक्ट्रम डिसॉर्डर कहा जाता है। अभी इस बीमारी के होने के स्पष्ट कारणों का पता नहीं चल पाया है। हालांकि, एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऑटिज्म होने की वजह सैंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान होना है। ये जन्म से लेकर तीन वर्ष की आयु तक विकसित होने वाला रोग है जो सामान्य रूप से बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है।
(ऑटिज्म दिवस पर नीला कुतुबमीनार)


दुनियाभर में विश्व आटिज्म जागरूकता दिवस 2 अप्रैल को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में दो अप्रैल के दिन को विश्व आटिज्म जागरूकता दिवस घोषित किया था। इस दिन उन बच्चों और बड़ों के जीवन में सुधार के कदम उठाए जाते हैं, जो आटिज्म से पीड़ित होते हैं। साथ ही उन्हें इस समस्या के साथ सार्थक जीवन बिताने में सहायता दी जाती है। नीला रंग ऑटिज्म का प्र‍तीक माना गया है। भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार 110 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार होता है और हर 70 बच्चों में से एक इस बीमारी से प्रभावित होता है।

क्या है ऑटिज्म
ऑटिज्म को कई नामों से जाना जाता है जैसे स्वालीनता, मानसिक रोग, स्वपरायणता। हर साल 2 अप्रैल को आटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि ऑटिज्म है क्या। दरअसल ऑटिज्म मस्तिष्क के विकास में बाधा डालने और विकास के दौरान होने वाला विकार है। ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। क्या आप जानते हैं व्यक्ति के विकास संबंधी समस्याओं में ऑटिज्म तीसरे स्थान पर है यानी व्यक्ति के विकास में बाधा पहुंचाने वाले मुख्य कारणों में ऑटिज्म भी जिम्मेदार है।
ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज्म के दौरान व्यक्ति को कई समस्याएं हो सकती हैं, यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है।
ऑटिज्म के रोगी को मिर्गी के दौरे भी पड़ सकते हैं।
कई बार ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति को बोलने और सुनने में समस्याएं आती हैं।
ऑटिज्म जब गंभीर रूप से होता है तो इसे ऑटिस्टिक डिस्‍ऑर्डर के नाम से जाना जाता है लेकिन जब ऑटिज्म के लक्षण कम प्रभावी होते हैं तो इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्‍ऑर्डर (ASD) के नाम से जाना जाता है। एएसडी के भीतर एस्पर्जर सिंड्रोम शामिल है।

ऑटिज्म का प्रभाव
ऑटिज्म  पूरी दुनिया में फैला हुआ है। क्या आप जानते हैं वर्ष 2010 तक विश्व में तकरीबन 7 करोड़ लोग ऑटिज्म से प्रभावित थे।
इतना ही नहीं दुनियाभर में ऑटिज्म प्रभावित रोगियों की संख्या मधुमेह, कैंसर और एड्स के रोगियों की संख्या मिलाकर भी इससे अधिक है।
ऑटिज्म प्रभावित रोगियों में डाउन सिंड्रोम की संख्या अपेक्षा से भी अधिक है।
आप ऑटिज्म पीडि़तों की संख्या का इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि दुनियाभर में प्रति दस हजार में से 20 व्यक्ति इस रोग से प्रभावित होते हैं।
लेकिन कई शोधों में यह भी बात सामने आई है कि ऑटिज्म महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में अधिक देखने को मिला है। यानी 100 में से 80 फीसदी पुरूष इस बीमारी से प्रभावित हैं।

बच्चों में ऑटिज्म की पहचान
बच्चों में ऑटिज्म को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। बच्चों में ऑटिज्म के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं-
कभी–कभी किसी भी बात का जवाब नहीं देते या फिर बात को सुनकर अनसुना कर देते हैं। कई बार आवाज लगाने पर भी जवाब नहीं देते।
किसी दूसरे व्यक्ति की आंखों में आंखे डालकर बात करने से घबराते हैं।
अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं, ऐसे में बच्चों के साथ ग्रुप में खेलना भी इन्हें पसंद नहीं होता।
बात करते हुए अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं करते या फिर अंगुलियों से किसी तरह का कोई संकेत नहीं करते।
बदलाव इन्हें पसंद नहीं होता। रोजाना एक जैसा काम करने में इन्हें मजा आता है।
यदि कोई बात सामान्य तरीके से समझाते हैं तो इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते।
बार-बार एक ही तरह के खेल खेलना इन्हें पसंद होता हैं।
बहुत अधिक बेचैन होना, बहुत अधिक निष्क्रिय होना या फिर बहुत अधिक सक्रिय होना। कोई भी काम एक्सट्रीम लेवल पर करते हैं।
ये बहुत अधिक व्यवहार कुशल नहीं होते और बचपन में ही ऐसे बच्चों में ये लक्षण उभरने लगते हैं। बच्चों में ऑटिज्म को पहचानने के लिए 3 साल की उम्र ही काफी है।
इन बच्चों का विकास सामान्य बच्चों की तरह ना होकर बहुत धीमा होता है।

ऑटिज्म होने के कारण
अभी तक शोधों में इस बात का पता नहीं चल पाया है कि ऑटिज्म होने का मुख्य कारण क्या है। यह कई कारणों से हो सकता है।

जन्म‍ संबंधी दोष होना।
बच्चे के जन्म से पहले और बाद में जरूरी टीके ना लगवाना।
गर्भावस्था के दौरान मां को कोई गंभीर बीमारी होना।
दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।
दिमाग के रसायनों में असामान्यता होना।
बच्चे का समय से पहले जन्म या बच्चे का गर्भ में ठीक से विकास ना होना।

लड़कियों के मुकाबले लड़कों की इस बीमारी की चपेट में आने की जयदा संभावना होती है। इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। हालांकि, जल्दी इसका निदान हो जाने की स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ किया जा सकता है। यह बीमारी दुनिया भर में पाई जाती है और इसका गंभीर प्रभाव बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज सभी पर पड़ता है।

No comments:

Post a Comment