टेलीवजन का पुनर्मुल्यांका आवश्यक होता जा रहा है और इसपे आने वाले कार्यक्रमों की गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। आज जब हम विश्व में बड़ी आर्थिक व्यवस्था के रूप में उभर रहे है तो आने वाले समय में विश्व भारत के बारे में और जानने को उत्सुक होगा।
हमें आज एक कमिटी की आवश्यकता है जो टेलीविजन पर आज प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का पुनर्मूल्यांकन कर सके और उसकी गुणवत्ता पे ध्यान दे सके। हम आज भी ८० और ९० के दशक में बने कार्यक्रमों का प्रसारण धड़ल्ले से किए जा रहे है जबकि आवश्यकता इससे कही अधिक की है। आज हमें टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की न केवल गुणवत्ता बढ़ाना होगा वरन हमें आने वाली और वर्तमान पीढ़ी के लिए आज और भविष्य के कार्यक्रमों का बड़े पैमाने पर निर्माण करना भी होगा।
सरकार इस दिशा में कितना ध्यान और कितनी दृढ है उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि २०१४ से २०१८ आते आते हम कोई भी हिट कार्यक्रम की श्रृंखला नहीं देख पाए है और न ही इस दिशा में होता कोई कार्य दिख रहा है। दूरदर्शन तो आज भी उन्ही कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहा है जो वर्षो पहले बने थे और प्राइवेट चैनेल्स वही दिखाएँगे जहाँ मुनाफा होगा।
तो फिर मास-कम्युनिकेशन के माध्यम का प्रसार सरकार कितना कर रही है ये आप स्वयं समझ सकते है। दो एक विज्ञापनों के माध्यम से कुछ कलेवर तो बदला प्रतीत होता है तो क्या हम उस दौर में पहुंच चुके है जहाँ सिर्फ विज्ञापन के माध्यम से मास कम्युनिकेशन का प्रसार होगा सत्य कुछ भी न होगा?
(ये लेखक के निजी विचार है )
- संपादकीय
No comments:
Post a Comment