रेप, कानून ने कितनी बदली सोच! - Kashi Patrika

रेप, कानून ने कितनी बदली सोच!


सख्त कानून, विरोध-प्रदर्शन के बीच रेप केसों की बढ़ती संख्या सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सिर्फ कानून बदल कर इन घटनाओं पर लगाम कसा जा सकता है। उन्नाव और कठुवा की ताजा घटना के बाद सभी अपने-अपने तरीके से विरोध दर्ज करा रहे हैं, सोशल साइट्स पर बहस की जा रही है, लेकिन इन सबके बीच अपराध के आंकड़े कुछ और ही कह रहे हैं...

चित्र साभार

बॉलीवुड फिल्म "पिंक" ने लड़कियों के प्रति समाज के एक वर्ग की धरणा को जिस तरह व्यक्त करने का प्रयास किया उसे लोगों ने खूब सराहा तो, लेकिन इससे लोगों की सोच में कोई बदलाव आया ऐसा प्रतीत नहीँ होता। महिलाओं-बच्चों के विरुद्ध बढ़ते अपराध को देखते हुए कानून सख्त हुए, कैंडल मार्च कर विरोध दर्ज कराने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ, परन्तु लगता है सबकुछ कागज-प्रदर्शन तक ही सिमट कर रह गया। कम से कम अपराध के बढ़ते ग्राफ तो इसी ओर इशारा करते हैं।
"या देवी सर्वभूतेषु..."स्त्री को देवी के रूप में पूजने वाले और मां को पिता से ऊंचा स्थान प्रदान करने वाले भारतवर्ष में महिलाओं के प्रति दिन-प्रति-दिन अपराध की बढ़ती घटनाओं ने शासन-प्रशासन सभी को कठघरे में खड़ा कर दिया है। निर्भया कांड के बाद को हुए पांच वर्ष बीत गए और इस दौरान यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और बलात्कार के खिलाफ कानून भी सख्त होते गए। निर्भया कांड के बाद पूरे देश में बलात्कारियों के खिलाफ कानून को सख्त बनाने की मांग ने जोर पकड़ा था। इस जघन्य कांड के तीन माह के भीतर बलात्कार और महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की समीक्षा की गई और उनमें फेरबदल कर उन्हें सख्त बनाया गया।
शातिर नाबालिग को भी निर्भया कांड के बाद विशेष मामलों में 16 से 18 साल की उम्र वाले अपराधियों के खिलाफ वयस्क अपराधियों की तरह केस चलाने का फैसला लिया गया। निर्भया कांड से पहले तक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रेप का दोषी पाए जाने पर नाबालिग को अधिकतम 3 साल की सजा हो सकती थी। लेकिन अब इस कानून में बदलाव कर विशेष मामलों में किसी नाबालिग को वयस्क की तरह सजा सुनाई जा सकती है।रसूखदार के इस कृत्य में शामिल होने पर काफी हो-हल्ला भी मचता है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। ऐसा लगता है बस राजनीतिक रोटियां सिंक रही है, तभी तो विरोध और कानून के बावजूद रेप केस की संख्या में इजाफा ही होता जा रहा है।


चिंता का विषय

कानून में सख्ती और सामाजिक जागरूकता के बावजूद आंकड़े बताते हैं कि रेप के मामलों में कोई कमी नहीं आई है। यहां तक कि पुलिस के रवैये में भी कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में रेप के मामलों में बढ़ोत्तरी ही हुई है। सबसे हैरानी वाली बात तो यह है कि नाबालिगों के खिलाफ रेप के मामलों में वृद्धि हुई है।

रोजाना 100 से अधिक महिलाएं बलात्कार का शिकार
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में देशभर में महिलाओं के साथ रेप के कुल 38947 मामले सामने आए, मतलब हर रोज औसतन 107 महिलाएं रेप का शिकार हुईं. जबकि 2014 में यह औसत 90 के करीब था। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2013 में भारत में बलात्कार की घटनाओं की संख्या बढ़कर 33,707 हो गई, जो 2012 में 24,923 थी। वर्ष 2013 में 15,556 मामलों में दुष्कर्म पीड़ितों की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी।
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 338954 मामले सामने आए। मतलब देशभर में रोज औसतन 928 महिलाएं किसी न किसी अपराध का शिकार हुईं। इन आंकड़ों की सबसे डरावनी तस्वीर यह है कि यौन शोषण का शिकार होने वालों में बच्चों का प्रतिशत काफी तेजी से बढ़ा है।

यौन शोषण-किडनैपिंग का रोज शिकार होते हैं 290 बच्चे
नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड के मुताबिक, देश में हर रोज 290 बच्चे ट्रैफिकिंग, जबरन मजदूरी, बाल विवाह, यौन शोषण जैसे अपराधों के शिकार होते हैं। देश में 12 साल की उम्र से कम वाले बच्चों के साथ मर्डर, किडनैपिंग जैसी घटनाएं काफी अधिक मात्रा में होती हैं।
2014 में बच्चों के साथ हुए अपराध के कुल 89,423 मामले दर्ज हुए थे, 2015 में ये नबंर 94,172 तक पहुंच गया। 2016 में इस आंकड़े ने 1 लाख का नंबर भी पार कर लिया। इनमें भी POCSO कानून के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या 8904 से बढ़कर 35980 तक पहुंची है।

रेप में एमपी अव्वल, गैंगरेप में यूपी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के 2017 के आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश वो राज्य है, जिसमें रेप के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज हुए। इसके ठीक बाद नंबर यूपी का आता है, जहां 4,500 से ज़्यादा बलात्कार संबंधी मामले दर्ज हुए।
यूपी के सदंर्भ में चौकानें वाली बात ये है कि रेप के दर्ज हुए कुल मामलों में 25% से ज़्यादा आरोपी 12 से 16 के भीतर की नाबालिग लड़कियां हैं। गैंगरेप के मामले दर्ज होने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश टॉप पर है और दूसरा नंबर राजस्थान का है।
कुल मिलाकर, बलात्कार, महिला अपराध के खिलाफ बनने वाली फिल्में या सामाजिक मंच पर किया जाने वाला वाद-विवाद भले प्रशंसा-तालियां बटोरता है, लेकिन रिकॉर्ड आज भी समाज के खोखलेपन की बखियां उघेरता दिखता है। अपराधों पर कानून-प्रदर्शन से नहीँ, शायद सोच बदलकर काबू पाया जा सकता है।

-सोनी सिंह

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