काशी सत्संग/ "जीवन का परमार्थ" - Kashi Patrika

काशी सत्संग/ "जीवन का परमार्थ"


जब कभी भी आप हारते हैं, तो आपको और कोई नहीं हराता है। आपको हराता है आपका स्वार्थ, अहंकार, अविवेक, अधैर्य, अतिमहत्वाकांक्षा, अतिलोभ, मोह, वासना, क्रोध, प्रमाद। इनमें से कोई एक होता है आपकी हार का जिम्मेदार, और श्रेय आप किसी और को दे देते हैं।
एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा, "विष क्या है"?
कृष्ण ने बहुत सुंदर उत्तर दिया, "हर वह चीज विष है, जो जीवन में आवश्यकता से अधिक होती है। फिर चाहे वह ताकत हो, धन हो, भूख हो, लालच हो, अभिमान हो, आलस हो, महत्वाकांक्षा हो, प्रेम हो या घृणा"।
इसी प्रकार जैसे लोग मुर्दे को कंधा देना पुण्य समझते हैं, अगर जीवित मनुष्य को सहारा देना पुण्य समझने लगें, तो जीवन भी सरल हो जाए और धरती भी पुण्यात्माओं से विह्वल हो जाए। इसीलिए बुराई से बचें और भलाई करने से चूंकें नहीं, यही जीवन का परमार्थ है। मौन और मुस्कान दोनों का इस्तेमाल कीजिए। मौन "रक्षा" कवच है, तो मुस्कान आपके जीवन का "स्वागत-द्वार"।
ऊं तत्सत...



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