बुधवार को विशेष अदालत द्वारा आसाराम को मिला आजीवन कारावास देश की कानून-व्यवस्था पर भरोसा तो बढ़ाता है, लेकिन देश में व्याप्त अंधविश्वास की चुगली भी करता है। इससे पहले गुरमीत राम रहीम बेनकाब हो चुके हैं, फिर भी अंध श्रद्धा कम नहीँ हो रही। कथित धर्मगुरुओं का धंधा आखिर भक्तों के बल पर ही न सिर्फ फलफूल रहा है, बल्कि दिन दोगुनी-रात चौगुनी की गति से बढ़ भी रहा है। यही वजह है कि सत्तर के दशक में साबरमती तट के छोटे से आश्रम से निकलकर 19 देशों में 400 से ज्यादा आश्रमों, चार करोड़ से ज्यादा भक्तों और दस हजार करोड़ से भी ज्यादा संपत्ति का स्वामी आसाराम बन गए। इतना ही नहीँ, उनके आगे नतमस्तक होने वालों में बडे़-बड़े राजनेता, व्यवसायिक रहे।
आसाराम एक ऐसे आभामंडल के स्वामी थे कि जब अपने ही शिष्य की नाबालिग बच्ची से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार हुए, तो भक्तों की फौज यह सच स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। वह अराजकता का ऐसा उदाहरण बने कि उनके जेल जाने और मुकदमा शुरू होते ही तमाम और मामले तो खुले ही, मामलों के गवाहों पर जानलेवा हमले भी शुरू हो गए। उनके एक निजी सहायक और आश्रम के एक विश्वासपात्र रसोइए की हत्या भी कर दी गई। कई और हत्याएं हुईं। कई गवाह तो अब तक लापता हैं।
आसाराम, गुरमीत राम रहीम, रामपाल हों या ढोंग का साम्राज्य खड़ा करने वाले अन्य तमाम फर्जी बाबाओं के खुलते राज, यह सब हमें सचेत कर रहा है। ऐसी तमाम घटनाएं बताती हैं कि बाबागीरी इस देश में इतना बड़ा धंधा है, जहां बिना किसी निवेश के भक्तों की फसल बोई जा सकती है और उसे बार-बार काटकर मालामाल हुआ जा सकता है। ऐसा धंधा, जहां बिना किसी प्रयास के बड़े-बड़े राजनेता और रईसों की फौज न सिर्फ अनुयाई बनी दिखती है, जाने-अनजाने ऐसे फर्जी चरित्र वालों की ढाल बनकर खड़ी हो जाती है। चिंता का विषय यह है कि ऐसे कई कथित संतों के कठघरे में खड़े होने के बावजूद अंध आस्था कम होने का नाम नहीँ ले रहा। अब भी समाज में भक्तों और संतों की भीड़ में बदलाव होता नहीँ दिख रहा। सभी को एक से कठघरे में खड़ा करना ठीक नहीँ है, परंतु आंखों पर पट्टी बांधे रखना भी कदापि उचित नहीँ है।
कुल मिलाकर, संत-धर्म-आस्था के बीच अपने बुद्धि-विवेक को कायम रखते हुए सच और झूठ को पहचानने की कोशिश करें, ताकि बार-बार आस्था के नाम पर दोहन से बचा जा सके।
-संपादकीय
आसाराम एक ऐसे आभामंडल के स्वामी थे कि जब अपने ही शिष्य की नाबालिग बच्ची से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार हुए, तो भक्तों की फौज यह सच स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। वह अराजकता का ऐसा उदाहरण बने कि उनके जेल जाने और मुकदमा शुरू होते ही तमाम और मामले तो खुले ही, मामलों के गवाहों पर जानलेवा हमले भी शुरू हो गए। उनके एक निजी सहायक और आश्रम के एक विश्वासपात्र रसोइए की हत्या भी कर दी गई। कई और हत्याएं हुईं। कई गवाह तो अब तक लापता हैं।
आसाराम, गुरमीत राम रहीम, रामपाल हों या ढोंग का साम्राज्य खड़ा करने वाले अन्य तमाम फर्जी बाबाओं के खुलते राज, यह सब हमें सचेत कर रहा है। ऐसी तमाम घटनाएं बताती हैं कि बाबागीरी इस देश में इतना बड़ा धंधा है, जहां बिना किसी निवेश के भक्तों की फसल बोई जा सकती है और उसे बार-बार काटकर मालामाल हुआ जा सकता है। ऐसा धंधा, जहां बिना किसी प्रयास के बड़े-बड़े राजनेता और रईसों की फौज न सिर्फ अनुयाई बनी दिखती है, जाने-अनजाने ऐसे फर्जी चरित्र वालों की ढाल बनकर खड़ी हो जाती है। चिंता का विषय यह है कि ऐसे कई कथित संतों के कठघरे में खड़े होने के बावजूद अंध आस्था कम होने का नाम नहीँ ले रहा। अब भी समाज में भक्तों और संतों की भीड़ में बदलाव होता नहीँ दिख रहा। सभी को एक से कठघरे में खड़ा करना ठीक नहीँ है, परंतु आंखों पर पट्टी बांधे रखना भी कदापि उचित नहीँ है।
कुल मिलाकर, संत-धर्म-आस्था के बीच अपने बुद्धि-विवेक को कायम रखते हुए सच और झूठ को पहचानने की कोशिश करें, ताकि बार-बार आस्था के नाम पर दोहन से बचा जा सके।
-संपादकीय
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