अमृत वाणी- राम स्वमं मुझे मार रहे हैं, इसीलिए मुझे चुपचाप रह जाना पड़ा... - Kashi Patrika

अमृत वाणी- राम स्वमं मुझे मार रहे हैं, इसीलिए मुझे चुपचाप रह जाना पड़ा...


दुखः भी भगवन ही देते हैं


पम्पा सरोवर में नहाते समय राम और लक्ष्मण ने सरोवर के तट की मिटटी में घनुष गाड़ दिए।
स्नान कर के लक्ष्मण ने धनुष निकालते हुए देखा, धनुष में खून लगा हुआ है। राम ने देख कर कहा, भाई जान पड़ता है कोई जीव हिंसा हो गयी। लक्ष्मण ने मिट्टी खोदकर देखा तो एक मेंढक था वह मरणासन्न हो गया था।  राम ने करुणापूर्ण स्वर में कहा,"तुमने आवाज़ क्यों नहीं दी? हम लोग तुम्हें बचा लेते. जब सांप पकड़ता है , तब तो खूब चिल्लाते हो." मेंढक ने कहा, "राम , जब सांप पकड़ता है , तब मैं चिल्लात हूँ, राम, रक्षा करो- राम, रक्षा करो. पर अब देखता हूँ, राम स्वमं मुझे मार रहे हैं, इसीलिए मुझे चुपचाप रह जाना पड़ा."


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