बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

आज पूरे विश्व में भारत का तेज विकास दर चर्चा का विषय बना हुआ है, जहां एक ओर अन्य देश अपनी आंतरिक समस्याओं से जूझ रहे और कई स्थानों पर सरकार के खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं, वहीँ भारत अपनी सतत विकास दर बनाए रखने और आगे बढ़ते रहने की मंशा पर कार्य कर रहा है। आज विश्व के तमाम देश भारत के संघीय ढांचे और रीति-रिवाजों की ओर  खींचे चले आ रहें हैं।

विश्व में भारत का ये समायोजित परचम लहराने में हमें केवल 69 साल लगे हैं, जबकि इतिहास के आईने में देखे तो आजादी और नई व्यवस्था का सूत्रपात विश्व में केवल 300 से 400 वर्ष पहले शुरू हुआ है और भारत इन वर्षो में लगभग 350 साल दूसरों की बनाई व्यवस्था और राजकीय कार्यों से ही चलता आया है। आज भारत के इन उपलब्धियों के पीछे यहाँ का सांस्कृतिक परिवेश है, जबकि विश्व के अधिकतर देश भौतिक व्यापारवाद की आधार शिला पर बढ़कर आगे आए हैं। उन्होंने मानव मष्तिष्क को कम्प्यूटर बना दिया और अब भी विश्वास करते है कि विकास की दिशा यही होगी। परिणामतः अब उन देशों के आम नागरिक भी भारत की व्यवस्था से खुश हैं और भारत को अगुए की भूमिका में देखना चाहते हैं। 

भारतीय प्रधानमंत्री के सामने चीन अब भी विदेशी मॉडल को विकास का सही मॉडल मानकर अपनी शर्ते रख रहा है। हालांकि, चीन को भान हो जाना चाहिए कि भारत एशिया के विकास मॉडल पर कार्य कर रहा है। चीन अगर उसमें अपनी भागीदारी न भी दे, तो भी एशिया के तमाम देश इस एक मंच पर जल्द ही भारत के साथ खड़े दिखाई देंगे। 

आज जिस गर्मजोशी से चीन ने भारत के प्रधामंत्री का अपने देश में स्वागत किया और अपनी विरासत का अवलोकन करवाया ये उसी का परिचायक है। पूरे विश्व में चीन अपने आर्थिक महाशक्ति के रूप में प्रदर्शित करता आया है, पर भारत के सामने उसने अपनी सांस्कृतिक विरासत को रखा है। इसका सीधा-सा अर्थ हमें ये लगाना चाहिए कि अब हमारी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं और हमारे समक्ष पनपी सभ्यतां ने भी अपनी व्यवस्था को बचाने-संवारने का जिम्मा हम पर छोड़ दिया है। 

चीन के रचनाकारों ने कभी भी आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना नहीं देखा। सांझी विरासत को सहेजने और आगे बढ़ने में चीन बहुत पहले पीछे छूट गया, जब उसने पश्चिम के भौतिकवाद के मॉडल को अपनाया। आज चीन अपनी उसी भूल को हमसे साझा कर रहा है। 

(ये लेखक के निजी विचार है )

- संपादकीय  

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