आम जन के चश्मे से देखें, तो इस हफ्ते बच्चियों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं ने जहां हर आमोखास को पंक्तिबद्ध किया, वहीँ कैश की किल्लत ने पसीने से सराबोर। कुशीनगर में रेलवे क्रासिंग पर हुए हादसे में 13 स्कूली बच्चों की मौत ने शोकाकुल किया, तो कथित संत आसाराम को मिली सजा ने राहत दी। राजनीतिक गलियारा वहीँ आरोप-प्रत्यारोप और आपसी खींचतान में बीता। इन सबके बीच, एक बड़ी राहत की खबर पूर्वोत्तरवासियों के लिए चुपके से आई। मेघालय से अफस्पा (सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम) को हटाए जाने की खबर ने भले सुर्खियां नहीँ बटोरी, लेकिन यह वहां के वाशिंदों के लिए बहुत बड़ी राहत है।
सजा पर सवाल
सबसे ज्यादा गर्म मुद्दा बच्चियों के साथ दुष्कर्म का रहा, जिसे केंद्र सरकार ने भी संजीदगी से लिया और क्रुद्ध एवं क्षुब्ध राष्ट्र की भावनाओं को समझते हुए ऐसे अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए अहम कानूनी सुधारों का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की विशेष बैठक में 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा तथा महिलाओं और 16 से कम उम्र की किशोरियों से दुष्कर्म के अपराधियों को अधिकतम दंड के प्रावधान को मंजूरी दी गई। नये कानूनी सुधार में पुलिस को ऐसे मामलों की जांच दो महीने के भीतर और अदालती निबटारा छह महीने के भीतर करने का भी प्रावधान शामिल है।
हालांकि, बलात्कार पर रोक लगाने के लिए सरकार ने सजा और सख्त करने का जो रास्ता चुना है, उससे कानून विशेषज्ञ और सामाजिक संगठन संतुष्ट नहीँ दिख रहे। उनकी राय में इससे समस्या के समाधान की कोई उम्मीद नहीं बनती। उलटे मौत की सजा के प्रावधान ने कई नई आशंकाओं को जन्म दिया है। प्रश्न यह उठता है कि सरकार ने अगर मौजूदा कानूनों के तहत ही हर अभियुक्त को सजा मिली होती, तो हालात इतने ज्यादा नहीं बिगड़ते। अब फांसी के प्रावधान के बाद यह आशंका बढ़ गई है कि मामले दर्ज ही न कराए जाएं, क्योंकि रेप के 95 फीसदी मामलों में परिवार के सदस्य ही दोषी होते हैं। पीड़िताओं की हत्या के मामले भी इससे बढ़ सकते हैं।
कैश की किचकिच
पिछले कुछ हफ्तों से कई राज्यों के एटीएम सूख गए हैं। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने देश के बैंकिंग संकट और इकॉनमी में कथित गिरावट को लेकर मोदी सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि नोटबंदी और उसके बाद पैदा हुए नगदी संकट ने बैंकों और इकॉनमी को डुबो दिया है। उन्होंने नोटबंदी के बाद बमुश्किल 18 महीनों में ही दोबारा पैदा हुए नगदी संकट के पीछे कई वजहें गिनाई हैं। उन्होंने फाइनैंसल रिजॉलूशन ऐंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (FRDI) बिल से उपजे भय, नए नोटों के हिसाब से एटीएम को रीकैलिब्रेट नहीं करने, आगामी चुनावों के लिए नोटों की होर्डिंग और विड्रॉल पर लगाए गए शुल्क की वजह से काफी मात्रा में कैश निकासी को वजह बताया है। हालांकि, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि सिस्टम में पर्याप्त कैश (125, 000 करोड़ रुपये) मौजूद है। इसके बावजूद आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि सर्कुलेशन में पर्याप्त करंसी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमीर तबका कैश की होर्डिंग कर रहा है। उनके मुताबिक इस संकट से सबसे ज्यादा अनौपचारिक क्षेत्र, गरीब परिवार प्रभावित हुए हैं। यानी ऐसे लोग जो पूरी तरह से डेली कैश और कैश-क्रेडिट के भरोसे हैं।
न्याय की जगी आस
नाबालिग बच्ची से बलात्कार के मामले में आसाराम को अदालत ने जो सजा सुनाई उससे न्याय की आस जगी है। इस सजा के कई संदेश हैं। पहला संदेश यही है कि कोई कितना भी ताकतवर और प्रभावशाली और पहुंच वाला क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। दूसरा संदेश यह है कि अध्यात्म की आड़ लेकर अपराध पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। समाज को भी चाहिए कि वह ऐसे तथाकथित संतों और बाबाओं की असलियत को समझे और उनसे दूर रहे। जोधपुर की विशेष अदालत ने आसाराम को मृत्युपर्यन्त कारावास की सजा सुनाई है। वहीं, इस अपराध में सहयोगी रहे दो आरोपियों को बीस-बीस साल की सजा हुई है। अलबत्ता अदालत ने दो अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। विशेष अदालत का यह फैसला ऐसे वक्त आया है जब देश में बलात्कार खासकर बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं को लेकर दुख और आक्रोश का माहौल है। लिहाजा, आसाराम को सुनाई गई सजा का स्वाभाविक ही चौतरफा स्वागत हुआ है।
बच्चों की जान के कौन जिम्मेदार?
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में ट्रेन और स्कूल वैन की टक्कर में 13 बच्चों की मौत के बाद भले शासन-प्रशासन ने दोषियों को सजा का आश्वासन दे घाव पर मरहम लगाने का प्रयास किया हो, लेकन इन मौतों का जिम्मेदार आखिर कौन है? मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग के कारण इस तरह की दुर्घटनाएं आए दिन होती रहतीं हैं। उत्तर प्रदेश में इससे पहले भी ऐसी लापरवाही के चलते कई बड़े हादसे हो चुके हैं। साल 2016 में भदोही के पास बच्चों से भरी स्कूल वैन ट्रेन की चपेट में आ गई थी, जिसमें 10 बच्चों की मौत हो गई थी। कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर में भी एक स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें 27 लोगों की मौत हुई थी। यहां मरने वालों में ज्यादातर बच्चे थे।
अफस्पा से राहत
अफस्पा (सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम) छह दशक पुराना कानून है। इसे एक सितंबर 1958 को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में लागू किया गया था। इन राज्यों की सीमाएं चीन, म्यांमा, भूटान और बांग्लादेश सटी हैं। हाल में मेघालय से अफस्पा को पूरी तरह हटा लिया गया है। यह एक सकारात्मक कदम है। सेना को विशेषाधिकारों से लैस करने वाले इस बेहद कड़े कानून को पूर्वोत्तर की जनता ने लंबे समय तक एक खतरनाक और दमनकारी कानून के रूप में देखा और झेला है। इस कानून की आड़ में कई बेगुनाह नौजवान सैन्य कार्रवाई का शिकार बने, इसलिए अफस्पा को हटाने की लंबे समय से मांग होती रही है। मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला तो इस कानून के विरोध में सोलह साल तक अनशन पर रहीं। अभी तक मेघालय से लगने वाली असम की सीमा पर चालीस फीसद इलाके में यह कानून लागू था। त्रिपुरा और मिजोरम के बाद मेघालय तीसरा राज्य है, जहां से अफस्पा को पूरी तरह हटा लिया गया है। अरुणाचल प्रदेश में भी इसका दायरा घटा दिया गया है। अरुणाचल में पिछले साल सोलह पुलिस थाना क्षेत्रों में इसे लागू किया गया था, लेकिन अब यह असम से लगने वाली सीमा के आठ थाना क्षेत्रों और म्यांमा सीमा से सटे तीन जिलों में ही लागू रहेगा।
कुल मिलाकर, सप्ताह मिलाजुला बीता, कुछ घटनाओं ने देश को झिंझोड़ा, तो वहीँ सकारात्मक फैसले भी आए, जिनसे फौरी राहत मिली। अंततः निदा फाजली की कुछ पंक्तियां-
फुरसत ने आज घर सजाया, कुछ इस तरह,
हर शय से मुस्कुराता है, रोता हुआ सा कुछ।
-सोनी सिंह
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