नोटबन्दी और जीएसटी लगे एक लम्बा अरसा बीत गया अभी भी ऐसा क्यों लग रहा है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर पूर्ण रूप से नहीं आई है ? इसके पीछे एकमात्र कारण वर्तमान सरकार है जिसने कभी इस विजन के साथ काम किया ही नहीं की भारत की भी स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था हो सकती है जो चीन या अमेरिकी अर्थव्यवस्था से भिन्न और स्वतन्त्र रूप से कार्य करती है।
सरकार ने एक कदम आगे बढ़ा कर ग्लोबल इन्वेस्टर्स को ये भरोसा दिलाने का प्रयास किया ही नहीं कि हमारे यहाँ निवेश करना और किसी भी देश में निवेश करने से फायदेमंद है। फिर चाहे वो चीन हो या अमेरिका साझेदारी में प्रतयेक अपना मुनाफा ही देखते है।
पर ग्लोबल इन्वेस्टर्स मुनाफे के साथ डुरेबिलिटी भी देखते है सरकार ने कभी भी किसी साझा मंच से जिसमे पूरा विपक्ष भी खड़ा हो उससे ये ऐलान नहीं किया की हमारी आर्थिक नीति जाहे जो सरकार हो बदलने नहीं वाली है और आज हम जहा खड़े है वह सत्ता पक्ष और विपक्ष के साझा प्रयासों का परिणाम है जो आगे भी जारी रहेगा।
पर ऐसा करने की जगह वर्तमान सरकार ने ओछी राजनीति और चुनाव को ध्यान में रखकर सदैव विपक्ष का मजाक ही उड़ाया। लोकतंत्र के लिए ये स्थिति हास्यापद है कि पक्ष और विपक्ष केवल टकराव के नजरिया व्यक्त करे।
खैर अब मोदी सरकार के पास समय भी कम है और विशेष उसकी कुछ करने की उसकी मंशा भी मालूम नहीं होती तो, ऐसे में वो केवल राजनैतिक जुमलेबाजी से काम चलाएगी और जल्द ही २०१९ के लोकसभा चुनाव की नीव तैयार करेगी जो खोखले वादों और इरादों पर खड़ी होगी।
- संपादक की कलम से
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