बुद्धम्‌ शरणम्‌ गच्छामि... - Kashi Patrika

बुद्धम्‌ शरणम्‌ गच्छामि...

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष:
बुद्ध को समझना-पाना है, तो आत्म को समझना होगा, क्योंकि बुद्ध मौन में मिलते हैं, शोर में नहीँ। बुद्ध ने स्वयं कहा है," जो मेरी बात समझेंगे, उन्हें मैं हर काल में उपलब्ध रहूंगा और जो नहीं समझेंगे वे बुद्ध के सामने बैठे रहकर भी बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे...


गौतम बुद्ध अतुलनीय हैं। हिमाच्छादित हिमालय, जिनकी कोई उपमा नहीँ दी जा सकती। बुद्ध का धर्म बुद्धि का धर्म कहा गया है। बुद्धि उसका आदि तो है, अंत नहीं। शुरुआत बुद्धि से है, प्रारंभ बुद्धि से है, क्योंकि मनुष्य वहां खड़ा है, लेकिन अंत, अंत उसका बुद्धि में नहीं। अंत तो परम अतिक्रमण है, जहां सब विचार खो जाते हैं। सब बुद्धिमत्ता विसर्जित हो जाती है।
बुद्ध ने स्वयं कहा है," जो मेरी बात समझेंगे, उन्हें मैं हर काल में उपलब्ध रहूंगा और जो नहीं समझेंगे वे बुद्ध के सामने बैठे रहकर भी बुद्धत्व को उपलब्ध नहीं हो सकेंगे, क्योंकि बुद्ध हमारी जागरूक अवस्था है। हमारा शरीर समय व क्षेत्र से घिरा है, लेकिन भीतर के चैतन्य का इन दोनों से कोई नाता नहीं, क्योंकि वह दोनों का अतीत है और आत्मबोध लक्ष्य न होकर प्रक्रिया है, जो हमें गहरे अनंत की ओर ले जाती है। प्राणों के अंतरतम में पहुंच जाते है।
बुद्ध ने कहा है, "मेरे पास आना, लेकिन मुझसे बंध मत जाना। तुम मुझे सम्मान देना, सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारा भविष्य हूं, तुम भी मेरे जैसे हो सकते हो, इसकी सूचना हूं। तुम मुझे सम्मान दो, तो यह तुम्हारा बुद्धत्व को ही दिया गया सम्मान है, लेकिन तुम मेरा अंधानुकरण मत करना। क्योंकि तुम अंधे होकर मेरे पीछे चले, तो बुद्ध कैसे हो पाओगे? बुद्धत्व तो खुली आंखों से उपलब्ध होता है, बंद आंखों से नहीं और बुद्धत्व तो तभी उपलब्ध होता है, जब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, खुद के भीतर जाते हो।"
दुःख का विषय यह है कि बुद्ध के अनुयायियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती गए, किंतु बुद्ध को समझने वालों की संख्या सीमित है। शायद ही कोई ऐसा हो, जो उन्हें महसूस भी कर पाया हो। बुद्ध ने उनको चेताया, जिनको चेताना सर्वाधिक कठिन है- विचार से भरे लोग, बुद्धिवादी, चिंतन, मननशील। प्रेम और भाव से भरे लोग तो परमात्मा की तरफ सरलता से झुक जाते है, उन्हें झुकना नहीं पड़ता। उनसे कोई न भी कहे, तो भी वे पहुंच जाते हैं, उन्हें पहुंचाना नहीं पड़ता, लेकिन वे तो बहुत थोड़े हैं और उनकी संख्या रोज थोड़ी होती गई है।
अंततः आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन जब स्वयं भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में मौजूद 50 करोड़ से अधिक लोग काश बुद्ध को समझने की कोशिश कर आत्म को जगाएं, क्योंकि बुद्ध तो मौन में मिलते हैं, शोर में नहीं। 

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