मार्गदर्शक तुमसे बाहर नहीं है, मार्गदर्शक तुम्हारे भीतर है। मार्गदर्शक को ढूंढ़ने के लिए तुम्हें अपने भीतर गहरे में जाना होगा। एक बार तुम आंतरिक मार्गदर्शक पा लेते हो तब कोई गलती नहीं होती, कोई पछतावा नहीं होता, कोई अपराध बोध पैदा नहीं होता। ठीक या गलत करने का कोई सवाल ही नहीं है; जो कुछ भी तुम करते हो वह ठीक होता है। यह बात नैतिकता की भी नहीं है, एक बार चेतना शुभ हो जाती है तो उससे जो कुछ भी आता है वह शुभ होता है। तुम प्रकाश में चलते हो और तुम प्रकाशित होकर चलते हो क्योंकि मन और मन का बोझ वहां नहीं बचता। और जब कोई प्रकाश में चलता है और प्रकाशित चलता है, जीवन हास्य, प्रेम, आनंद बन जाता है।
जब मार्गदर्शक मिल जाता है, तुम अपने भीतर गुरु को पा लेते हो।
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