बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

आज की तार्किक राजनीति यही कहती है की सरकार और विपक्ष आमने सामने कई सम्मलेन करे और वैश्विक रूप से इसका प्रचार प्रसार किया जाए की विदेश नीति और अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर सारा भारत एक सी राय रखता है फिर चाहे वो चीन की प्रति घेराबंदी ही क्यों न हो।  

बात जहा तक चीन की है तो उसका टूटना लगभग तय है चाहे वो आज हो ४-५ साल बाद जब तक किसी भी देश में लोकतंत्र नहीं लगता उसे किसी भी रूप में एक राष्ट्र का दर्जा नहीं दिया जा सकता मेरे हिसाब से तो चीन महज व्यपारियो की एक फौज है जो केवल पैसे को प्राथमिकता देकर आगे बढ़ रही है उसे अपने देश के नागरिको से भी कभी न कोई लगाव रहा है और न रहेगा वो केवल उन्हें अपनी अर्थनीति के लिए औजार भर मानती है।  ऐसे में ऐसी राज्यव्यवस्था से भारत के टकराव का सवाल हो नहीं सकता जो मुट्ठी भर गिने चुने लोगो के हाथ में हो और वह भारत की सम्प्रभुता को टक्कर दे। 

रहा उसका फैलाव और भारत को घेरने की नीति तो गहे बगाहे वो कुछ लोगो या देशो से सम्बन्ध स्थापित करने सा है किसी पुरे राष्ट्र का फैसला नहीं है जहां वह की सरकार बदली वही चाईना का उसमे हस्तक्षेप भी समाप्त हो जायेगा।  
वो उन राष्ट्रों को महबूती प्रदान कर रहा है जो भारत के अभिन्न मित्र रहे है और रहेंगे भी क्योकि उनका भारत की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में विश्वास और लगाव है जिस दिन चीन के व्यापारी लोगो का गुब्बारा फटा जब सभी लोग चीनी सामने का बहिष्कार करने लगे क्योकि वो एक तरीके से बंधुआ मजदूरी से निर्मित होता है उस दिन ये सभी देश जिनको चीन मजबूती प्रदान कर रहा है या करना चाहता है वो भारत के साथ अग्रिम पक्ति  दिखाई देंगे।  

ये लेखक के  निजी विचार है। 

- संपादकीय  

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