बाबा सुतनखु का खत - Kashi Patrika

बाबा सुतनखु का खत

गपशप 

का हो लोगन कइसन हउअ जा बाल बच्चा सब मस्ती में अउर सुनावल जाए।  आज खत लिखे में देरी वदे माफ़ी चाहत हई आज व्यस्तता ज्यादा रहल और कालिया का खरपत्तूआ २ मिल पैदल चलवईलस एही से दिन भर सुतल रहली।  चला ई सब जाए द ई सब ता लगल रहेला।  आज का दिन भी बड़ा जबरदस्त बीतलस और आज हम दिन भर जोहत रहली की कब तू लोगन से बात होइ; मगर साझी खानी माँ गंगा नहाए चल गइली जा इहे वदे समय से गपशप नाही हो पायल एकरे बदे क्षमा प्रार्थी हई। 

आज आहा लोगन से कहब की माँ गंगा पे ध्यान देवल जाए बड़ी ओटिआयल लगत रहलिन।  सालन से हमनी का पाप धोअत धोअत माई अब दुबरायल जात हई। हमनी जब बचपन में गंगा नहाए जाट रहली जा त बाऊ जी कहत रहलन की कम से कम दोइ मुट्ठी बालू निकल दे बचवा।  तब हमनी नहीं समझत रहली की बाऊ जी खेल खेल में हमनी के माई के साफ रखे बड़े कहत रहलन। आज त शहर भर का कचरा उन्ही में जात ह त हमनि के उनकर ज्यादा ख्याल रखे के चाहि।  

खैर हमहू कौन बात ले कर बैठ गइली आज कल का लड़का बच्चा इ सब कहा जाने है आज एक खे बात जरूर कहब की हमनी आपन जिन्दगी अइसही बिता देहली जा पर तू लोगन कम से कम अइसन मत करिहा और जग समाज का ख्याल रखिह जा। 

बाकि मिले पे। 

- बाबा सुतनखु 

No comments:

Post a Comment